LC परिपथ
जब किसी परिपथ में धारिता C तथा प्रेरकत्व L श्रेणीक्रम में संयोजित होते हैं। तथा यह एक प्रत्यावर्ती धारा स्रोत द्वारा जुड़े होते हैं तो इस प्रकार बने परिपथ को LC परिपथ कहते हैं।
जब संधारित्र C तथा प्रेरकत्व L को श्रेणीक्रम में एक प्रत्यावर्ती धारा स्रोत से परिपथ में जोड़ा जाता है तो इस स्थिति में संधारित्र के सिरों पर विभवांतर VC, धारा i से 90° पीछे होगा। अर्थात विभवांतर तथा धारा के बीच 90° का कालांतर होगा। इसके विपरीत प्रेरकत्व के सिरों के बीच विभवांतर VL, धारा i से 90° आगे (या अग्रगामी) होगा।
तब इस प्रकार VL तथा VC के बीच का कलांतर 180° होगा। यह भी कह सकते हैं कि यह दोनों कला में एक दूसरे के विपरीत होंगे। चित्र से स्पष्ट किया गया है।
यदि LC परिपथ का कुल विभवांतर V है तब
V = VL ~ VC
~ का मतलब है कि VL या VC में जो भी बड़ा होगा वह धनात्मक (positive) होगा अर्थात यदि VC का मान 100 तथा VL का मान 50 है तो ऐसे लिख सकते हैं
V = 100 – 50
LC परिपथ की प्रतिबाधा
Z = VL ~ VC
अनुनादी आवृत्ति
जब LC परिपथ में धारितीय प्रतिघात XC तथा प्रेरण प्रतिघात XL बराबर होती हैं। तो प्रतिबाधा Z का मान शून्य हो जाता है। एवं इस परिपथ में धारा का आयाम अनंत हो जाता है अब यह विद्युत अनुनाद की स्थिति होती है। इस प्रकार विद्युत अनुनाद की स्थिति में उत्पन्न आवृत्ति को अनुनादी आवृत्ति resonant frequency in Hindi कहते हैं।
आसान शब्दों में ” वह आवृत्ति जिसमें प्रत्यावर्ती परिपथ में बहने वाली धारा का मान अधिकतम प्राप्त हो तो इस आवृत्ति को अनुनादी आवृत्ति कहते हैं। “
पढ़ें… 12वीं भौतिकी नोट्स | class 12 physics notes in hindi pdf
अनुनादी आवृत्ति का सूत्र
अनुनाद की स्थिति में
प्रेरण प्रतिघात = धारितीय प्रतिघात
XL = XC
चूंकि XL = ωL एवं XC = 1/ωC तो
ωL = 1/ωC
परन्तु ω = 2πf होता है तब
2πfL = 1/2πfC
2πf × 2πf = 1/LC
4π2f2 =1/LC
f2 = 1/4π2LC
f = \sqrt{ \frac{1}{4πLC} }
\footnotesize \boxed { f = \frac{1}{2π} \frac{1}{\sqrt{LC}} }
जहां f परिपथ की आवृत्ति है जिसे अनुनादी आवृत्ति कहते हैं उपरोक्त समीकरण ही अनुनादी आवृत्ति का सूत्र है।