प्रत्यावर्ती धारा परिपथ
प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में वोल्टेज तथा धारा के बीच कलांतर का मान परिपथ की प्रकृति पर निर्भर करता है कि वोल्टेज तथा धारा एक साथ या अलग-अलग न्यूनतम व अधिकतम मान प्राप्त कर रही हैं।
प्रतिरोध पर प्रत्यावर्ती धारा
प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में केवल शुद्ध प्रतिरोध R होता है। तो वोल्टेज तथा धारा दोनों समान कला में होते हैं। अर्थात् प्रत्यावर्ती धारा तथा वोल्टेज एक साथ न्यूनतम तथा अधिकतम मान प्राप्त करते हैं।
तब इनके धारा तथा वोल्टेज के समीकरण इस प्रकार लिखे जा सकते हैं।
V = V0sinωt
i = i0sinωt
दोनों समीकरणों की आपस में भाग करने पर
\large \frac{V}{i} = \frac{V_0sinωt}{i_0sinωt}
\large \frac{V}{i} = \frac{V_0}{i_0}
समीकरण की ओम के नियम से तुलना करने पर हम पाते हैं कि अनुपात V/i अथवा V0/i0 परिपथ का प्रतिरोध R है। इसका मात्रक ओम होता है।
प्रतिरोध का व्यवहार प्रत्यावर्ती धारा (AC) के लिए वैसा ही होता है जैसा कि दिष्ट धारा (DC) के लिए होता है। अर्थात प्रतिरोध AC और DC में समान रूप से काम करता है।
प्रेरकत्व पर प्रत्यावर्ती धारा
जब प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में केवल प्रेरकत्व L होता है। तो प्रत्यावर्ती वोल्टेज, धारा से 90° अग्रगामी अथवा धारा, वोल्टेज से 90° पशचगामी होती है।
तब इनके धारा एवं वोल्टेज के समीकरण इस प्रकार लिख सकते हैं।
V = V0sin(ωt + π/2)
i = i0sinωt
अथवा
V = V0sinωt
i = i0sin(ωt – π/2)
उपरोक्त समीकरण की ओम के नियम से तुलना करने पर हम कह सकते हैं। कि अनुपात V/i अथवा V0/i0 परिपथ का प्रतिरोध R है। चूंकि यहां प्रतिरोध प्रेरकत्व के कारण है अतः इसे प्रतिरोध न कहकर प्रेरण प्रतिघात कहते हैं। इसे XL से प्रदर्शित करते हैं इसका मान ωL के बराबर होता है। तो
XL = ωL
जहां ω कोणीय वेग है इसका मान 2πf होता है तो
\footnotesize \boxed { X_L = 2πfL } ओम
दिष्ट धारा DC के लिए आवृत्ति f = 0 तब
\footnotesize \boxed { X_L = 0 } ओम
अतः प्रेरकत्व का प्रयोग दिष्ट धारा में नहीं होता है क्योंकि दिष्ट धारा में प्रेरकत्व प्रयोग करने पर परिपथ में आवृत्ति का मान शून्य हो जाता है। जिस कारण धारा प्रवाहित नहीं होती है अतः प्रेरकत्व केवल प्रत्यावर्ती धारा में ही प्रयोग किया जाता है।
संधारित्र पर प्रत्यावर्ती धारा
जब प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में केवल संधारित्र C होता है। तो प्रत्यावर्ती वोल्टेज, धारा से 90° पशचगामी अथवा धारा, वोल्टेज से 90° अग्रगामी होती है।
तो वोल्टेज एवं धारा के समीकरण इस प्रकार लिख सकते हैं।
V = V0sinωt
i = i0sin(ωt + π/2)
अथवा
V = V0sin(ωt – π/2)
i = i0sinωt
ऊपर दिए गए समीकरण में अनुपात V/i अथवा V0/i0 परिपथ का प्रतिरोध R ही है।
चूंकि यहां प्रतिरोध, संधारित्र के कारण है अतः इसे प्रतिरोध के स्थान पर प्रेरण प्रतिघात कहते हैं। इसे XC से प्रदर्शित करते हैं इसका मान 1/ωC के बराबर होता है। तो
XC = 1/ωC
जहां ω कोणीय वेग है इसका मान 2πf होता है तो
\footnotesize \boxed { X_L = \frac{1}{2πfC} } ओम
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दिष्ट धारा DC के लिए आवृत्ति f = 0 तब
\footnotesize \boxed { X_C = ∞ } ओम
अतः संधारित्र का प्रयोग दिष्ट धारा में नहीं होता है क्योंकि दिष्ट धारा में संधारित्र का प्रयोग करने पर परिपथ में आवृत्ति का मान अनन्त हो जाता है। जिस कारण परिपथ खराब हो सकता है।
अतः संधारित्र का प्रयोग केवल प्रत्यावर्ती धारा में ही होता है दिष्ट धारा में नहीं।