अनुगमन वेग के आधार पर ओम के नियम की व्युत्पत्ति, सत्यापन, व्याख्या, निगमन, अपवाह वेग

पिछले अध्याय में हम अपवाह वेग तथा अनुगमन वेग के बारे में पढ़ चुके हैं। और ओम के नियम से भी पूरी तरह परिचित हैं। अब हम इस अध्याय में अनुगमन वेग के आधार पर ओम के नियम की व्युत्पत्ति या निगमन के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

अनुगमन वेग के आधार पर ओम के नियम की व्युत्पत्ति या निगमन

जब किसी चालक तार के सिरों पर विभवांतर V लगाया जाता है। तो उसमें धारा i बहने लगती है। तो

i = neAVd  समी. ①

जहां A = तार के अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल, Vd = अपवाह वेग, e = इलेक्ट्रॉन का आवेश तथा n = प्रति एकांक आयतन में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या है।

यदि तार की लंबाई L है। तो इसके प्रत्येक बिंदु पर उत्पन्न विद्युत क्षेत्र की तीव्रता
E = \large \frac{V}{L}

इस विद्युत क्षेत्र के कारण प्रत्येक इलेक्ट्रॉन पर लगने वाला बल
F = eE या F = \large \frac{eV}{L}
(यहां इलेक्ट्रॉन का आवेश है जो के स्थान पर प्रयोग हुआ है।)

यदि इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान m है। तो उत्पन्न त्वरण
a = \large \frac{F}{m}
a = \large \frac{eV}{mL} समी. ②

चालक तार के भीतर मुक्त इलेक्ट्रॉन अपने धन-आयनों से बार-बार टकराते रहते हैं। यदि किसी इलेक्ट्रॉन की दो क्रमागत टक्करो के बीच का समय अंतराल τ है। जिसे श्रांतिकाल (τ) भी कहते हैं। तो इलेक्ट्रॉन के वेग में की aτ वृद्धि होगी।
यदि किसी क्षण इलेक्ट्रॉन का वेग a1τ1 है। तो इस चालक का वेग, विद्युत क्षेत्र E की उपस्थिति में पूर्व वेग से बढ़कर u1 + aτ हो जाता है। जहां u इलेक्ट्रॉन का ऊष्मीय वेग है।

यदि मुक्त इलेक्ट्रॉन की संख्या n है तथा अनुगमन वेग Vd हो तो
Vd = \large \frac{(u_1+aτ_1)+(u_2+aτ_2)+….}{n}
Vd = \large \frac{(u_1+u_2+…)}{n} + \frac{a(τ_1+τ_2+….)}{n}
Vd = \large 0 + \frac{a(τ_1+τ_2+….)}{n}
जहां को (τ1 + τ2 +….) इलेक्ट्रॉनों का श्रांतिकाल कहते हैं। इसका औसत श्रांतिकाल τ = (τ1 + τ2 +….)/n होगा। तो
Vd = 0 + aτ
Vd = aτ
अब समी. ② से a का मान रखने पर
Vd = \large ( \frac{eV}{mL} ) τ
तथा समी. ① से Vd = \large ( \frac{i}{neA} ) का मान रखने पर
\large ( \frac{i}{neA} ) = \large ( \frac{eV}{mL} ) τ
i = neA \large ( \frac{eV}{mL} ) τ
\large \frac{V}{i} = \large ( \frac{mL}{ne^2τA} )
अब ओम के नियम R = \large \frac{V}{i} से
R = \large ( \frac{mL}{ne^2τA} )
तो इस प्रकार हम देख सकते हैं कि R तथा \large \frac{V}{i} के मान समान हैं
अतः       \footnotesize \boxed{ R = \frac{V}{i} }

स्पष्ट है कि चालक पर लगाया गया विभवांतर उसमें प्रवाहित धारा का अनुपात एक नियतांक होता है। यही ओम का नियम है।

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