सभी सजीवों में चेतना होती है। इस गुण के कारण ही जीवधारी अपने बाह्य तथा आन्तरिक वातावरण में होने वाले परिवर्तनों को जान पाते हैं। एवं इन परिवर्तनों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया दर्शाते हैं।
नियंत्रण एवं समन्वय नोट्स
सभी सजीव अपने पर्यावरण में हो रहे परिवर्तनों के अनुरूप अनुक्रिया करते हैं। पर्यावरण में होने वाले परिवर्तनों को उद्दीपन कहते हैं। तथा उद्दीपन के प्रति की गई प्रतिक्रिया को अनुक्रिया कहते हैं।
जीवधारियों में बाह्य व भीतरी वातावरण को एकसमान अवस्था में बनाए रखने की क्षमता को नियंत्रण कहते हैं। तथा शरीर के अंदर के वातावरण को समान अथवा नियमित भौतिक-रासायनिक दशाओं में बनाए रखने की अर्न्तनिहित प्रवृत्ति को समन्वय कहते हैं। बिना समन्वय के जीवन संभव नहीं है।
जंतुओं में नियंत्रण एवं समन्वय
सरल जीवों जैसे अमीबा में नियंत्रण एवं समन्वय (control and coordination in Hindi) की विशेष आवश्यकता नहीं होती है। क्योंकि इनके कोशिकांग ही आवश्यक समन्वय कर लेते हैं। परंतु बहुकोशिकीय जीवों विशेषकर जिनमें अलग-अलग अंग व शरीर क्रियात्मक तंत्र होते हैं। नियंत्रण एवं समन्वय बहुत आवश्यक होते हैं।
ग्राही अंग – ग्राही अंगों द्वारा तंत्रिका तंत्र बाहरी तथा भीतरी वातावरण से संपर्क बनाए रखता है। बाहरी वातावरण से उद्दीपन ग्रहण करने वाले ग्राही अंग को ज्ञानेंद्रिय कहते हैं। जैसे – कान, आंख, त्वचा, नाक तथा जीभ आदि।
तन्त्रिका तन्त्र
सारे शरीर में तंत्रिका तंत्र का जाल बिछा रहता है। जिससे शरीर के विभिन्न भागों एवं मस्तिष्क के बीच संदेशों का आदान-प्रदान से शरीर का नियंत्रण एवं समन्वय होता है। पौधों में तन्त्रिका तन्त्र नहीं पाया जाता है। जबकि बहुत सरल जंतुओं जैसे हाइड्रा में भी तन्त्रिका तन्त्र होता है।
तन्त्रिका तन्त्र, तंत्रिका कोशिकाओं या न्यूरॉन के एक संगठित जल का बना होता है। यह सूचनाओं को विद्युत आवेग के द्वारा शरीर के एक भाग से दूसरे भाग तक ले जाता है। शारीरिक क्रियाओं के नियंत्रण एवं समन्वय की पहली व्यवस्था तन्त्रिका तन्त्र है।
जब किसी जन्तु के शरीर के अन्दर अथवा बाहर कोई परिवर्तन होता है। तो कुछ अंग इस परिवर्तन से प्रभावित होकर इसकी सूचना तन्त्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क या रीढ़रज्जु को पहुंचा देते हैं।
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तंत्रिका कोशिका (न्यूरॉन)
तंत्रिका कोशिका, तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है। तंत्रिका कोशिका विद्युत के तार के समान होती है। इसके एक सिरे पर संवेदना ग्राही भाग संवेदन को ग्रहण करता है। तथा संवेदन (सूचना) को विद्युत स्पन्दों में परिवर्तित कर दिया जाता है। जो तंत्रिका कोशिका के दूसरे भाग पर स्थित मस्तिष्क में जाते हैं। मस्तिष्क संवेदन (सूचना) को ग्रहण करके उसे समझकर उस पर अनुक्रिया करता है। मस्तिष्क में केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र होता है।
तन्त्रिका कोशिका में तीन भाग होते हैं।
1. द्रुमिका
2. कोशिका काय
3. तन्त्रिकाक्ष या एक्सॉन
1. द्रुमिका – कोशिका काय से निकालने वाली धागे के समान संरचना जो सूचना प्राप्त करती है। द्रुमिका कहलाती है। इन्हें डेंड्रॉन भी कहा जाता है।
2. कोशिका काय – यह तन्त्रिका कोशिका का मुख्य भाग है। इसके मध्य एक केन्द्रक तथा इसके चारों ओर कोशिकाद्रव्य होता है। कोशिकाद्रव्य में प्रोटीन के अनेक सूक्ष्म कण होते हैं। जिन्हें निसिल्स कण कहते हैं। कोशिका काय को साइटॉन भी कहते हैं।
3. तन्त्रिकाक्ष या एक्सॉन – कोशिका काय से निकले अनेक प्रवर्धों में से एक प्रवर्ध लम्बा व मोटा होता है। जिसे तन्त्रिकाक्ष या एक्सॉन कहते हैं। एक्सॉन के चारों ओर न्यूरीलेमा नमक झिल्ली होती है। तन्त्रिकाक्ष सूचना के विद्युत आवेग को, कोशिका काय से दूसरी न्यूरॉन की द्रुमिका तक पहुंचाता है।
अन्तर्गथन या सिनेप्स – अन्तर्गथन या सिनेप्स तन्त्रिका कोशिका के अन्तिम सिरे तथा अगली तन्त्रिका कोशिका के द्रुमिका के बीच एक रिक्त स्थान होता है। यहां पर विद्युत आवेग को रासायनिक संकेत में परिवर्तित कर दिया जाता है। जिससे यह आगे संचरित हो सके।
पादपों में समन्वय
शरीर की क्रियाओं के नियंत्रण तथा समन्वय के लिए जंतुओं में तन्त्रिका तन्त्र पाया जाता है। लेकिन पादपों में न तो तन्त्रिका तन्त्र होता है और न ही कोई विशेष संवेदी अंग। फिर भी पादपों में उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया देखी जा सकती है।
जब हम छुई-मुई के पौधे की पत्तियों को छूते हैं। तो वे मुड़ना प्रारम्भ कर देती हैं तथा नीचे की ओर झुक जाती हैं। जब अंकुरित बीज का नन्हा-सा पौधा वृद्धि करता है। तो उसकी जड़ें नीचे की ओर तथा तना ऊपर की ओर बढ़ता है।
अतः पादपों में होने वाली समन्वय क्रियाएं विभिन्न पादप गतियों के रूप में परिलक्षित होती हैं। पादप दो विभिन्न प्रकार की गतियां प्रदर्शित करते हैं।
1. वृद्धि पर आश्रित
2. वृद्धि मुक्त
पादप हार्मोन
पादपों में वृद्धि तथा विकास को नियन्त्रित करने के लिए कुछ विशिष्ट प्रकार के रासायनिक पदार्थ होते हैं जिन्हें पादप हार्मोन कहते हैं। पादप हार्मोन जटिल कार्बनिक पदार्थ होते हैं जो पेड़-पौधों में निश्चित स्थान पर बनते हैं। तथा संवहन ऊतकों द्वारा पेड़-पौधों के विभिन्न भागों में संचरित होकर उनकी वृद्धि को नियन्त्रित करते है।
कुछ मुख्य पादप हार्मोन निम्न प्रकार से हैं।
1. ऑक्सिन
2. जिबरेलिन
3. साइटोकाइनिन
4. एब्सिसिक अम्ल
जंतुओं में हार्मोन
वे रसायन जो जंतुओं की क्रियाओं, विकास एवं वृद्धि का समन्वय करते हैं हार्मोन कहलाते हैं। हार्मोन जिन अंगों में उत्पन्न होते हैं उन्हें अन्तःस्रावी ग्रंथियां कहते हैं। इनमें कोई वाहिकाएं नहीं होती हैं और यह अपना स्राव (हार्मोन) को सीधे रुधिर में स्रावित करती हैं। रुधिर के साथ प्रत्येक हार्मोन शरीर में विशिष्ट स्थान पर पहुॅंचकर विशिष्ट परिवर्तन करता है।
हार्मोन, अन्तःस्रावी ग्रंथियां तथा उनके कार्य
क्रम संख्या | हार्मोन | अन्तःस्रावी ग्रंथि | कार्य |
1 | वृद्धि हार्मोन | पीयूष ग्रंथि (पिट्यूटरी) | वृद्धि व विकास का नियंत्रण |
2 | थॉयरोक्सिन हार्मोन | थायरॉइड ग्रंथि | शारीरिक उपापचयी क्रियाओं का नियंत्रण |
3 | इन्सुलिन हार्मोन | अग्नाशय | रुधिर में शर्करा की मात्रा का नियंत्रण |
4 | टेस्टोस्टेरोन हार्मोन (नर में) एस्ट्रोजन हार्मोन (मादा में) | वृषण अण्डाशय | पुरुषों में लैंगिक लक्षण उत्पन्न करता है मादा लैंगिक अंगों का विकास व मासिक चक्र का नियंत्रण |
5 | एड्रीनलीन हार्मोन | एड्रीनल ग्रंथि | हृदय तथा रुधिर वाहिनियों में रुधिर दाब का नियंत्रण |
class 10 science chapter 6 notes in Hindi pdf
नियंत्रण एवं समन्वय कक्षा 10 विज्ञान का 6 अध्याय है। इस अध्याय के अंतर्गत कुछ महत्वपूर्ण टॉपिक है जिन पर Study Nagar द्वारा स्पेशल लेख लिखे गए हैं सभी छात्र उन्हें जरूर पढ़ें।
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