एक आकाशीय पिंड, जिसमें हम निवास करते हैं। वह (पृथ्वी) एक चुंबक की तरह ही व्यवहार करता है। इस चुंबकीय क्षेत्र को पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र कहते हैं।
पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र
हमारी पृथ्वी एक ऐसा व्यवहार करती है। जैसे इसके अंदर एक बहुत बड़ी शक्तिशाली चुंबक रखी हो, इस चुंबक का उत्तरी ध्रुव हमारी पृथ्वी के दक्षिण ध्रुव की ओर तथा चुंबक का दक्षिणी ध्रुव हमारी पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव की ओर है।
यही कारण है कि कोई स्वतंत्र पूर्वक लटकी चुंबकीय सुई सदैव उत्तरी-दक्षिणी ध्रुव की ओर ही ठहरती है। इसकी व्याख्या निम्न बिंदुओं के आधार पर की जा सकती है।
(i) स्वतंत्र पूर्वक लटकी चुंबकीय सुई सदैव उत्तरी-दक्षिणी दिशा में ही ठहरती है। इसका कारण यह है, कि हम कोई चुंबकीय सुई को इस प्रकार लटका दें। कि वह चुंबकीय सुई न ही धरती और न ही किसी वस्तु से स्पर्श हो अर्थात् वह स्वतंत्र रहे। तो इस चुंबकीय सुई का उत्तरी ध्रुव हमारी पृथ्वी की उत्तरी दिशा की ओर तथा चुंबकीय सुई का दक्षिणी ध्रुव पृथ्वी की दक्षिण दिशा की ओर आकर रूक जाएगा। अर्थात चुंबकीय सुई उत्तर-दक्षिण दिशा में ही आकर ठहरती है।
(ii) दक्षिणी चुंबकीय ध्रुव, भौगोलिक उत्तरी ध्रुव के निकट होता है तथा उत्तरी चुंबकीय ध्रुव, भौगोलिक दक्षिणी ध्रुव के निकट होता है। जैसा चित्र में स्पष्ट किया गया है।
(iii) यदि हम लोहे की छड़ को उस दिशा में जिस दिशा में चुंबकीय सुई ठहरती है। उसी दिशा में जमीन की नीचे गाड़ दें। तो कुछ समय बाद यह लोहे की छड़ एक चुंबक के समान ही रूप ले लेगी। अर्थात् यह चुंबक बन जाती है।
चुंबकीय अक्ष
पृथ्वी के चुंबकीय उत्तरी ध्रुव तथा चुंबकीय दक्षिणी ध्रुवों को मिलाने वाली रेखा को चुंबकीय अक्ष कहते हैं।
पृथ्वी की चुंबकीय अक्ष अपने भौगोलिक अक्ष से 11.3° का कोण बनाती है।
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चुंबकीय निरक्ष (magnetic equator in hindi)
जिन स्थानों पर चुंबकीय सुई पृथ्वी की सतह के क्षैतिज अर्थात् समांतर होती है। उन स्थानों से गुजर कर जाने वाली तथा पृथ्वी के ध्रुवों को मिलाने वाली रेखा के लंबवत तल, पृथ्वी की गोलीय सतह को एक व्रत के रूप में काटता है इस काटे गए व्रत को पृथ्वी की चुंबकीय निरक्ष कहते हैं। जैसे चित्र में दर्शाया गया है।