कॉपर प्रकृति में स्वतंत्र तथा संयुक्त दोनों अवस्थाओं के रूप में पाया जाता है। इसके अयस्क सल्फाइड एवं कार्बोनेट के रूप में मिलते हैं।
कोपर के प्रमुख अयस्क निम्न प्रकार से हैं।
(i) कॉपर पायराइट – CuFeS2
(ii) मेलेकाइट – CuCO3•Cu(OH)2
(iii) क्यूप्रस ऑक्साइड – Cu2O
(iv) कॉपर ग्लांस – Cu2S
कॉपर का निष्कर्षण
कॉपर का निष्कर्षण (extraction of copper in Hindi) निम्न पदों में होता है।
1. अयस्क का सांद्रण
इसमें अयस्क को बारीक पीस लेते हैं फिर बारीक पिसे हुए अयस्क को जल तथा चीड़ के तेल में मिलाकर एक टैंक में डाल दिया जाता है एवं टैंक में ऊर्ध्वाधर नली की सहायता से वायु प्रवाहित की जाती है जिससे अशुद्धि नीचे बैठ जाती है। एवं अयस्क के कण झाग के साथ ऊपर आ जाते हैं जिन्हें अलग करके धो लिया जाता है। यह फेन प्लवन विधि कहलाती है।
2. अयस्क का भर्जन
सांद्रित अयस्क को परावर्तनी भट्टी में भर्जित करते हैं। भर्जन की प्रक्रिया में अयस्क में निम्न परिवर्तन होते हैं।
(a) अयस्क में अशुद्धियां ऑक्सीकृत होकर वाष्पशील ऑक्साइडों के रूप में दूर हो जाती हैं।
S + O2 \longrightarrow SO2
4As + 3O2 \longrightarrow 2As2O3
(b) अयस्क, स्केटर सल्फाइड तथा क्यूप्रस सल्फाइड का मिश्रण बनाता है।
2CuFeS2 + O2 \longrightarrow Cu2S + 2FeS + SO2
3. प्रगलन
भर्जित अयस्क को वात्या भट्टी में कोक व सिलिका मिलाकर प्रगलन करते हैं।
इसमें अनेक अभिक्रियाएं संपन्न होती हैं।
2FeS + 3O2 \longrightarrow 2FeO + 2SO2
फैरस ऑक्साइड रेत (सिलिका) के साथ धातुमल बना लेता है।
FeO + SiO2 \longrightarrow \footnotesize \begin{array}{rcl} FeSiO_3 \\ धातुमल \end{array}
4. बेसेमरीकरण
मैट से काॅपर प्राप्त करने के लिए बेसेमर परिवर्तक का उपयोग करते हैं। यह प्रक्रिया बेसेमरीकरण कहलाती है।
यह स्टील की बनी नाशपाती आकार की एक भट्टी होती है। इसमें द्रवित में थोड़ी रेत मिलाकर उसे बेसेमर परिवर्तक में डाल देते हैं जिनके भीतर चूना या MnO का अस्तर लगा होता है। परिवर्तक में गर्म वायु प्रवाहित करते हैं जिसमें निम्न अभिक्रिया संपन्न होती हैं।
2FeS + 3O2 \longrightarrow 2FeO + 2SO2
2Cu2S + 3O2 \longrightarrow 2Cu2O + 2SO2
क्यूप्रस ऑक्साइड, आयरन सल्फाइड से क्रिया करके Cu2S तथा FeO बनाता है एवं FeO रेत से क्रिया करके FeSiO3 धातुमल बनाता है।
Cu2O + FeS \longrightarrow Cu2S + FeO
FeO + SiO2 \longrightarrow \footnotesize \begin{array}{rcl} FeSiO_3 \\ धातुमल \end{array}
क्यूप्रस सल्फाइड (Cu2S) तथा क्यूप्रस ऑक्साइड (Cu2O) क्रिया करके कॉपर धातु का निर्माण करते हैं।
2Cu2O + Cu2S \longrightarrow 6Cu + SO2
इस प्रकार कॉपर पेंदी में जमा हो जाता है द्रवित कॉपर को बाहर निकाल कर ठंडा करने पर इसमें घुली SO2 बुलबुलों के रूप में बाहर निकलने लगती है। जिस कारण कॉपर में फफोले पड़ जाते हैं यह फफोलेदार कॉपर लगभग 98% शुद्ध होता है इसे फफोलेदार कॉपर कहते हैं।
कॉपर के उपयोग
तांबा एक बहुत उपयोगी धातु है। इसका उपयोग अनेक प्रकार की वस्तुएं बनाने में किया जाता है।
- विद्युत उपकरण, केबिल, तार में कॉपर का उपयोग किया जाता है।
- इसका उपयोग वाहनों में विभिन्न यंत्रों को बनाने में किया जाता है।
- इसका उपयोग धातुओं पर चादर या लेपन चढ़ाने में किया जाता है।
- इसका उपयोग सोना व चांदी के साथ मिश्रधातु बनाकर आभूषण बनाने में किया जाता है।
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