हैलोएल्केन
एल्केन से हाइड्रोजन परमाणुओं को हैलोजन परमाणुओं द्वारा प्रतिस्थापित करने के फलस्वरूप प्राप्त यौगिक को हैलोएल्केन (haloalkanes in Hindi) कहते हैं। इसे हैलोजन व्युत्पन्न अथवा एल्किल हैलाइड भी कहते हैं। हेलोहैलोएल्केन एक सजातीय श्रेणी बनाते हैं। जिसका सामान्य सूत्र CnH2n+1X होता है।
हैलोजन परमाणु द्वारा प्रतिस्थापित हाइड्रोजन परमाणुओं की संख्या के आधार पर इन्हें मोनो, डाई, ट्राई तथा टेट्रा हैलोएल्केन कहा जाता है।
जिन हैलोएल्केन में हैलोजन परमाणु प्राथमिक कार्बन से जुड़ा होता है तो उसे प्राथमिक एल्किल हैलाइड अथवा 1° एल्किल हैलाइड कहते हैं।
इसी प्रकार जब हैलोएल्केन में हैलोजन परमाणु द्वितीयक तथा तृतीयक कार्बन से जुड़ा होता है तो उसे क्रमशः द्वितीयक तथा तृतीयक एल्किल हैलाइड या 2° तथा 3° एल्किल हैलाइड कहते हैं।
जहां R एल्किल समूह है एवं X हैलोजन परमाणु F, Cl, Br तथा I को व्यक्त करता है।
हैलोएल्केन बनाने की विधियां
1. एल्कोहोल से – जब एल्कोहोल की अभिक्रिया निम्न अभिकर्मक जैसे (HCl, KBr, PCl3, PCl5 आदि) से कराते हैं। तो हैलोएल्केन का निर्माण होता है।
(i) R—OH + HCl \xrightarrow {ZnCl_2} RCl + H2O
(ii) 3R—OH + PCl3 \longrightarrow 3RCl + H3PO3
(iii) R—OH + PCl5 \longrightarrow RCl + POCl3 + HCl
2. एल्केन से –
R—H + X2 \xrightarrow {hv} R—X + HX
CH4 + Cl2 \xrightarrow {hv} CH3Cl + HCl
3. हैलोजन विनिमय द्वारा –
एल्किल हैलाइड की शुष्क एसीटोन की उपस्थिति में सोडियम आयोडाइड से अभिक्रिया कराने पर आयोडो एल्केन प्राप्त होती है। इस अभिक्रिया को फिंकेल्सटाइन अभिक्रिया कहते हैं।
R—X + NaI \xrightarrow {शुष्क\,एसीटोन} R—I + NaX
हैलोएल्केन के भौतिक गुण
- हैलोएल्केन का गलनांक और क्वथनांक जनक एल्केनों की तुलना में बहुत अधिक होता है क्योंकि हैलोएल्केन में प्रबल अंतराण्विक (या द्विध्रुव – द्विध्रुव) आकर्षण बल होता है। इनका क्वथनांक का क्रम निम्न होता है।
RI > RBr > RCl > RF - पृष्ठीय क्षेत्रफल बढ़ाने पर इनके गलनांक और क्वथनांक बढ़ते हैं। चूंकि पृष्ठीय क्षेत्रफल बढ़ाने पर वांडरवाॅल्स आकर्षण बल बढ़ते हैं।
- हैलोजन परमाणु का द्रव्यमान बढ़ने पर घनत्व बढ़ता है। एल्किल ब्रोमाइड तथा आयोडाइड जल से भारी होते है जबकि एल्किल क्लोराइड तथा फ्लोराइड हल्के होते हैं। अतः हैलोएल्केन के घनत्व का क्रम निम्न होता है।
RI > RBr > RCl > RF - हैलोएल्केन जल में अविलेय होते हैं क्योंकि यह जल के अणुओं के साथ हाइड्रोजन बंध नहीं बनाते हैं। और जल के अणु में उपस्थित हाइड्रोजन बंध को न ही तोड़ पाते हैं।
हैलोएल्केन के रासायनिक गुण
1. एल्किल हैलाइड, शुष्क ईथर की उपस्थिति में सोडियम के साथ अभिक्रिया करके हाइड्रोकार्बन बनाते हैं। इस अभिक्रिया को वुर्ट्ज अभिक्रिया कहते हैं।
2R—X + 2Na \xrightarrow {शुष्क\,ईथर} R—R + 2NaX
2. जब हैलोएल्केन की शुष्क ईथर की उपस्थिति में मैग्नीशियम से अभिक्रिया की जाती है। तो एल्किल मैग्नीशियम हैलाइड बनते हैं जिसे ग्रीन्यार (ग्रिगनार्ड) अभिकर्मक कहते हैं।
R—X + Mg \xrightarrow {शुष्क\,ईथर} R—MgX
जहां R – एल्किल समूह (CH3 , C2H5 , …..) तथा X – हैलोजन (Cl, Br, I, F) को व्यक्त करता है।
काइरलता
वे वस्तुएं जो अपने दर्पण प्रतिबिंब पर अध्यारोपित नहीं होती हैं। उन वस्तुओं को काइरल कहते हैं। तथा इस गुण को काइरलता कहते हैं।
एवं वे वस्तुएं जो अपने दर्पण प्रतिबिंब पर अध्यारोपित हो जाती हैं उन्हें अकाइरल कहते हैं।
हैलोएल्केन के उपयोग
- हैलोएल्केन का प्रमुख उपयोग कार्बनिक संश्लेषण में किया जाता है।
- एल्किल क्लोराइड, हैलोएल्केन का उपयोग निश्चेतक के रूप में किया जाता है।
- एल्किल ब्रोमाइड, हैलोएल्केन का उपयोग औषधियां बनाने में किया जाता है।
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Good note 📝
Sach mei bahoot acha explain hai or esse agar hamare pass notebook na bhi ho to bhi revision kiya ja sakta hai।
Maja aa gaya maine yaha se padh ke 78 % up bord me hasil kar liya