मानव में जनन तंत्र
मनुष्य में जनन अंग मादा में 12-13 वर्ष की आयु में तथा नर में 15-18 वर्ष की आयु में क्रियाशील हो जाते हैं। जीवन का वह काल जब नर में शुक्राणु तथा मादा में अण्डकोशिका का निर्माण शुरू हो जाता है। तो इस अवधि को यौवनारम्भ कहते हैं। यौवनारम्भ से नर और मादा के शरीर में परिवर्तन होने लगते हैं।
नर जनन तंत्र
नर जनन तंत्र में वृषण, शुक्रवाहिनी, शुक्राशय, मूत्रमार्ग, संबंध ग्रन्थियां आदि होती हैं।
1. वृषण – नर जनन अंगों में एक जोड़ी अंडाकार ग्रन्थियां होती हैं। जिन्हें वृषण कहते हैं। यह उदर गुहा के बाहर वृषणकोष में स्थित होते हैं। वृषण में नर युग्मक अर्थात् शुक्राणु बनते एवं संचित होते हैं।
2. शुक्रवाहिनी – प्रत्येक वृषण से एक नली निकलती है। जिसे शुक्रवाहिनी कहते हैं। दोनों वृषण से निकली हुई शुक्रवाहिनी मूत्रमार्ग में खुलती है। ये शुक्राणु को वृषण से शिशन तक पहुंचाती हैं।
3. शुक्राशय – यह मूत्राशय के पीछे स्थित वलित थैली के समान संरचनाएं होती हैं। शुक्राशय में क्षारीय द्रव स्रावित होता है। यह द्रव वीर्य के अधिकांश भाग का निर्माण करता है। जिसमें शुक्राणु गति कर सकते हैं।
4. मूत्रमार्ग – यह मूत्र तथा वीर्य दोनों को बाहर निकलने का मार्ग है बाहरी आवरण के साथ इस शिशन कहते हैं। शिशन की संरचना पेशियों तथा रुधिर कोटरों से होती है। शिशन में अधिक मात्रा में रुधिर प्रवाहित होता है इसका उपयोग मूत्र तथा नर जनन कोशिका अर्थात् शुक्राणु को बाहर निकलने में होता है। शिशन द्वारा ही शुक्राणु को मादा जनन अंगों में प्रवेश कराया जाता है।
5. संबंधित ग्रन्थियां – शुक्राशय तथा प्रोस्टेट ग्रन्थियां एक क्षारीय द्रव स्रावित करती हैं। जिससे शुक्राणु तरल अवस्था में आ जाते हैं। प्रोस्टेट ग्रन्थि वृषण में शुक्राणु के पोषण के लिए विशेष तरल द्रव उत्पन्न करती हैं। शुक्राणु तथा ग्रन्थियों का स्राव मिलकर वीर्य का निर्माण करते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य ग्रंथियां जैसे काउपर ग्रन्थि आदि भी होती हैं।
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मादा जनन तंत्र
मादा जनन तंत्र में अण्डाशय, अण्डवाहिनी, गर्भाशय तथा योनि आदि अंग होते हैं। स्त्रियों में यौवनारम्भ 12-13 वर्ष की आयु में प्रारंभ होता है।
1. अण्डाशय – मादा जनन कोशिकाओं अथवा अण्डकोशिकाओं का निर्माण अण्डाशय में होता है। मादा में दो अण्डाशय उदर गुहा में पृष्ठ तल पर चिपके रहते हैं। दो में से एक अण्डाशय से द्वारा हर महीने एक परिपक्व अण्ड उत्पन्न किया जाता है। मादा युग्मक के अतिरिक्त अण्डाशय, मादा लिंग हार्मोन एस्ट्रोजन व प्रोजैस्ट्रॉन भी उत्पन्न करता है। लड़की के जन्म के समय की अण्डाशय में हजारों परिपक्व अण्डकोशिकाएं होती हैं।
2. अण्डवाहिनी – प्रत्येक अण्डाशय के पास एक-एक अण्डवाहिनी होती है। अण्डवाहिनी का आकार कीप के समान होता है। अण्डाशय द्वारा उत्पन्न अण्ड कोशिकाओं को गर्भाशय तक स्थानान्तरण अण्डवाहिनी द्वारा किया जाता है। अण्ड कोशिकाओं तथा शुक्राणु का निषेचन अण्डवाहिनी में होता है।
3. गर्भाशय – दोनों ओर की अण्डवाहिनी बीच में जुड़कर एक लचीली, थैलीनुमा संरचना बनाती हैं। जिसे गर्भाशय कहते हैं। गर्भाशय में ही शिशु का विकास होता है।
4. योनि – गर्भाशय एक पेशीय नलिकाकार संरचना योनि द्वारा शरीर के बाहर खुलता है। गर्भाशय का वह स्थान जहां से योनि प्रारंभ होती है। उसे ग्रीवा कहते हैं। संभोग के समय नर शिशन को योनि द्वारा ग्रहण किया जाता है। योनि को जन्म नाल भी कहा जाता है।
Note – यह लेख खासकर कक्षा 10 के छात्रों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। अगर आप किसी ओर कक्षा के छात्र हैं तो कृपया अपने सिलेबस से एक बार जांच कर लें।