नाभिकीय संलयन
जब दो या अधिक हल्के नाभिक संयुक्त होकर एक भारी नाभिक का निर्माण करते हैं। तब इस प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं।
नाभिकीय संलयन प्रक्रिया से प्राप्त भारी नाभिक का द्रव्यमान, हल्के दोनों नाभिकों के द्रव्यमान के योग से कम होता है। इस प्रकार नाभिकीय संलयन में द्रव्यमान की हानि (क्षति) होती है जो कि ऊर्जा के रूप में प्राप्त हो जाती है।
नाभिकीय संलयन के उदाहरण
जब दो भारी हाइड्रोजन अर्थात् ड्यूटिरियम (1H2) संलयित होते हैं। तो ट्राॅइटियम प्राप्त होता है। एवं द्रव्यमान की क्षति ऊर्जा के रूप में प्राप्त होती है।
1H2 + 1H2 → 1H3 + 1H1 + ऊर्जा
अब ट्राॅइटियम को पुनः ड्यूटिरियम के साथ मिलकर संलयित होने पर हीलियम नाभिक का निर्माण होता है।
1H3 + 1H2 → 2He4 + 0n1 + ऊर्जा
अतः स्पष्ट है कि ड्यूटिरियम के तीन नाभिक संलयित होकर एक हीलियम नाभिक का निर्माण करते हैं। इस दौरान जो ऊर्जा मुक्त होती है वह प्रोटॉन sub>1H1) तथा न्यूट्रॉन sub>0n1) को गतिज ऊर्जा के रूप में प्राप्त होती है।
नाभिकीय संलयन का उदाहरण हाइड्रोजन बम (hydrogen bomb) है। अर्थात हाइड्रोजन बम नाभिकीय संलयन की क्रियाविधि पर आधारित होता है।
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नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया
नाभिकीय संलयन प्रक्रिया एक बहुत ही कठिन प्रक्रिया है। क्योंकि इसमें जिन नाभिकों का संलयन होता है। वह नाभिक, इस दौरान एक दूसरे के समीप आ जाते हैं। एवं अब इन नाभिकों के बीच प्रतिकर्षण बल अत्यंत तीव्र (मजबूत) हो जाता है। इस बल के विपरीत नाभिकों का संलयन करने के लिए बहुत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है जो कि प्राकृतिक रूप से उपलब्ध नहीं है। इस कारण नाभिकीय संलयन प्रक्रिया बहुत कठिन है।