धातुओं का शोधन, आसवन, विद्युत अपघटनी परिष्करण, वाॅन आर्कल, वाष्प प्रावस्था, मंडल विधि

धातुओं का शोधन

अपचयन विधियों से धातुएं पूर्णतः शुद्ध नहीं होती हैं अतः इन्हें निम्न विधियों द्वारा शुद्ध किया जाता है। धातुओं के शोधन की अनेक विधियां हैं। जैसे –
(1) आसवन
(2) मंडल परिष्करण
(3) द्रावगलन परिष्करण
(4) विद्युत अपघटनी शोधन
(5) वाष्प प्रावस्था परिष्करण
(6) वर्णलेखिकी या क्रोमैटोग्राफी विधि

1. आसवन

इस विधि का उपयोग कम क्वथनांक वाली धातुओं जैसे – जिंक तथा मरकरी में किया जाता है।
इसमें अशुद्ध धातु को वाष्पीकृत करके शुद्ध धातु को आसुत के रूप में प्राप्त कर लेते हैं।

2. मंडल परिष्करण

इस विधि का उपयोग अर्धचालकों जैसे – जर्मेनियम, सिलिकॉन तथा गैलियम आदि के शोधन में किया जाता है।
इसमें गलित अशुद्ध धातु को पिघलाकर जब ठंडा करते हैं तो शुद्ध धातु के क्रिस्टल बनकर अलग हो जाते हैं। एवं अशुद्ध धातु गलित अवस्था में अलग हो जाती है यह प्रक्रिया निष्क्रिय वातावरण में कराई जाती है।

3. द्रावगलन परिष्करण

इस विधि का उपयोग कम गलनांक वाली धातु जैसे टिन आदि से अशुद्धियां दूर करने में किया जाता है।
इसमें अशुद्ध धातु को पिघलाकर ढालू सतह पर बहने दिया जाता है जिससे अधिक गलनांक वाली अशुद्धियां पृथक हो जाती हैं।

4. विद्युत अपघटनी शोधन

इस विधि द्वारा काॅपर, सिल्वर, निकिल, एल्युमीनियम, सोना आदि धातुओं का शोधन किया जाता है।

विद्युत अपघटनी शोधन
विद्युत अपघटनी शोधन

इस शोधन में शुद्ध धातु का कैथोड तथा अधातु का एनोड बनाते हैं। इसमें धातु के लवण के विलयन को विद्युत अपघट्य के रूप काम में लेते हैं। जब विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो शुद्ध धातु कैथोड पर एकत्र हो जाती है तथा अशुद्धियां एनोड मड के नीचे बैठ जाती हैं। इसमें निम्न अभिक्रियाएं संपन्न होती हैं।
एनोड पर M \longrightarrow Mn+ + ne
कैथोड पर Mn+ + ne \longrightarrow M

5. वाष्प प्रावस्था परिष्करण

वाष्प प्रावस्था द्वारा धातुओं का शोधन निम्न दो बिंदुओं की आवश्यकता होती है।
(i) उपयुक्त अभिकर्मक के साथ धातु में अवाष्पशील यौगिक बनाने की क्षमता होनी चाहिए।
(ii) वाष्पशील पदार्थ आसानी से अपघटित हो जाता हो, अर्थात वह अधिक स्थायी नहीं होना चाहिए।
इस परिष्करण को निम्न उदाहरण से स्पष्ट किया जाता है।

(a) माॅण्ड प्रक्रम (निकिल शोधन)
इस प्रक्रम में निकिल की कार्बन मोनोऑक्साइड के प्रवाह के साथ क्रिया कराई जाती है। जिससे वाष्पशील यौगिक निकिल टेट्राकार्बोनिल का निर्माण होता है।
Ni + 4CO \xrightarrow{330-350K} [Ni(CO)4]
प्राप्त यौगिक को और अधिक ताप पर गर्म करते हैं जिससे यह अपघटित होकर शुद्ध निकिल बन जाता है।
Ni(CO)4 \longrightarrow \footnotesize \begin{array}{rcl} Ni \\ शुद्ध\,निकिल \end{array} + 4CO

(b) वाॅन आर्कल विधि (जर्कोनियम तथा टाइटेनियम का शोधन)
इस विधि द्वारा Zr तथा Ti से O4 तथा N4 की अशुद्धियों को दूर किया जाता है।
इसमें अशुद्ध धातु को आयोडीन के साथ गर्म करके वाष्पशील यौगिक धातु आयोडाइड बनाते हैं। यह धातु आयोडाइड विद्युत द्वारा अपघटित होकर शुद्ध धातु में बदल जाता है।

Ti + 2I2 \xrightarrow{500K} \footnotesize \begin{array}{rcl} TiI_4 \\ वाष्पशील\,यौगिक \end{array}

\footnotesize \begin{array}{rcl} TiI_4 \\ वाष्पशील\,यौगिक \end{array} \xrightarrow{1700K} \footnotesize \begin{array}{rcl} Ti \\ शुद्ध\,धातु \end{array} + 2I2

Zr + 2I2 \xrightarrow{870K} \footnotesize \begin{array}{rcl} TiI_4 \\ वाष्पशील\,यौगिक \end{array}

\footnotesize \begin{array}{rcl} TiI_4 \\ वाष्पशील\,यौगिक \end{array} \longrightarrow \footnotesize \begin{array}{rcl} Zr \\ शुद्ध\,धातु \end{array} + 2I2


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