ब्रॉन्स्टेड लोरी का अम्ल क्षार सिद्धांत | Bronsted and Lowery concept in Hindi

ब्रॉन्स्टेड और लोरी का सिद्धांत

डेनिश रसायनज्ञ जोहांस ब्रॉन्स्टेड तथा अंग्रेज रसायनज्ञ थॉमस एम. लोरी ने अम्लों और क्षारों की एक व्यापक परिभाषा प्रस्तुत की, जिसे ब्रॉन्स्टेड और लोरी का अम्ल क्षार सिद्धांत (Bronsted and Lowery concept in Hindi) कहते हैं।
ब्रॉन्स्टेड और लोरी सिद्धांत के अनुसार, अम्ल वे पदार्थ होते हैं। जिनमें प्रोटोन H+ देने की प्रवृत्ति होती है। तथा इसके विपरीत क्षारक वे पदार्थ होते हैं। जिनमें प्रोटोन H+ ग्रहण करने की प्रवृत्ति होती है। जैसे –
\scriptsize \begin{array}{rcl} HCl \\ अम्ल \end{array} \rightleftharpoons Cl + \scriptsize \begin{array}{rcl} H^+ \\ प्रोटोन \end{array}
\scriptsize \begin{array}{rcl} H_2O \\ क्षारक \end{array} \scriptsize \begin{array}{rcl} H^+ \\ प्रोटोन \end{array} \rightleftharpoons H3O+

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संक्षेप में प्रोटॉन दाता को अम्ल तथा प्रोटोन ग्राही को क्षारक कहते हैं। इस सिद्धांत के अनुसार कोई पदार्थ अम्ल का गुण क्षारक की उपस्थिति में प्रदर्शित करता है।

वह अभिक्रिया जिसमे अम्ल से क्षारक में प्रोटोन का स्थानांतरण होता है। उस अभिक्रिया को अम्ल क्षारक अभिक्रिया कहते हैं।

ब्रॉन्स्टेड लोरी का अम्ल क्षार सिद्धांत

अतः किसी अम्ल और क्षारक के मध्य अभिक्रिया होने पर अम्ल प्रोटोन का त्याग करके अपने संयुग्मी क्षारक में परिवर्तित हो जाता है। तथा क्षारक प्रोटोन ग्रहण करके अपने संयुग्मी अम्ल में परिवर्तित हो जाता है। अभिक्रिया द्वारा स्पष्ट किया गया है।

संयुग्मी अम्ल क्षारक युग्म

जब किसी अम्ल में से एक प्रोटोन का बहिष्कार हो जाता है तो शेष भाग उस अम्ल का संयुग्मी क्षारक कहलाता है। तथा ठीक इसी प्रकार किसी क्षारक में जब एक प्रोटोन ग्रहण होता है। तो बने भाग को उस क्षारक का संयुग्मी अम्ल कहते हैं। जैसे –
क्षारक NH3 का संयुग्मी अम्ल NH4+ है तथा अम्ल HCl का संयुग्मी क्षारक Cl है।
\scriptsize \begin{array}{rcl} HCl \\ अम्ल \end{array} \xrightarrow {-H^+} \scriptsize \begin{array}{rcl} Cl^- \\ संयुग्मी\,क्षारक \end{array}
\scriptsize \begin{array}{rcl} NH_3 \\ क्षारक \end{array} \scriptsize \begin{array}{rcl} H^+ \\ प्रोटोन \end{array} \longrightarrow \scriptsize \begin{array}{rcl} NH_4^+ \\ संयुग्मी\,अम्ल \end{array}
अतः प्रत्येक अम्ल का एक संयुग्मी क्षारक तथा प्रत्येक क्षारक का एक संयुग्मी अम्ल होता है।

Note –
• यदि ब्रॉन्स्टेड अम्ल प्रबल है तो इसका संयुग्मी क्षारक दुर्बल होगा। और यदि ब्रॉन्स्टेड अम्ल दुर्बल है तो इसका संयुग्मी क्षारक प्रबल होगा।
• ध्यान दें की संयुग्मी अम्ल में यह प्रोटोन अतिरिक्त होता है। तथा प्रत्येक संयुग्मी क्षारक में एक प्रोटोन कम होता है।

ब्रॉन्स्टेड और लोरी का सिद्धांत

इस समीकरण में HCl , H2 अणु को प्रोटोन देकर अम्ल की भांति तथा H2 क्षारक की भांति व्यवहार करता है।

वह पदार्थ जो अम्ल और क्षारक दोनों के लवणों को प्रदर्शित करते हैं। उन्हें उभयधर्मी (एंफोटैरिक) पदार्थ कहते हैं। जैसे – जल H2 एक उभयधर्मी पदार्थ है। क्योंकि यह अम्ल और क्षार दोनों का कार्य कर सकता है।

Note – ब्रॉन्स्टेड लोरी सिद्धांत के अनुसार केवल प्रोटोन दाता और प्रोटोन ग्राही ही पदार्थों को अम्ल और क्षार में बांटते हैं जो इस सिद्धांत का एक दोष सिद्ध हुआ।


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