कार्बनिक यौगिकों के शोधन की विधियां, ऊर्ध्वपातन, क्रिस्टलन, आसवन

कार्बनिक यौगिकों के शोधन की विधियां

किसी प्राकृतिक स्रोत से निष्कर्षण अथवा प्रयोगशाला में संश्लेषण के पश्चात कार्बनिक यौगिकों का शोधन करना अति आवश्यक है। कार्बनिक यौगिकों के शोधन की अनेक विधियां हैं जो निम्न प्रकार से हैं।
1. ऊर्ध्वपातन
2. क्रिस्टलन
3. आसवन
4. वर्ण लेखन

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1. ऊर्ध्वपातन

वह प्रक्रम जिसमें किसी ठोस पदार्थ को गर्म करने पर वह ठोस पदार्थ बिना द्रव अवस्था में आए सीधा वाष्प अवस्था में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रकार की शोधन विधि को ऊर्ध्वपातन कहते हैं। इस विधि का उपयोग उन यौगिकों पर किया जाता है। जो गर्म करने पर अवाष्पशील अशुद्धियों से ऊर्ध्वपातित हो जाते हैं।

2. क्रिस्टलन

यह ठोस कार्बनिक पदार्थों के शोधन में प्रयुक्त की जाने वाली सबसे सामान्य विधि है। इस विधि में अशुद्ध यौगिकों किसी ऐसे विलायक में विलीन किया जाता है। जिसमें की यौगिक सामान्य ताप पर अल्प विलेय होता है लेकिन जब ताप उच्च किया जाता है तो यौगिक पूर्ण मात्रा में घुल जाता है। इसके पश्चात विलयन को इतना सांद्रित किया जाता है कि वह विलयन लगभग संतृप्त हो जाता है। तब विलयन को ठंडा करने पर शुद्ध पदार्थ क्रिस्टलित हो जाता है तथा अशुद्धियां एवं यौगिक अम्ल में रह जाता है।

3. आसवन

आसवन विधि की सहायता से वाष्पशील द्रवों को अवाष्पशील अशुद्धियों से पृथक कर सकते हैं। तथा इस प्रकार के द्रव जिनके क्वथनांकों में पर्याप्त अंतर हो उन्हें भी पृथक किया जा सकता है।
यह विधि इस सिद्धांत पर आधारित है कि निश्चित दाब पर प्रत्येक शुद्ध द्रव एक नियत ताप पर उबलने लगता है। जिसे उसका क्वथनांक कहते हैं।
भिन्न क्वथनांकों वाले द्रव भिन्न ताप पर वाष्पित होते हैं इसके पश्चात वाष्प को ठंडा करने पर प्राप्त द्रव को अलग-अलग करके एकत्र कर लेते हैं।

प्रभाजी आसवन

दो द्रवों के क्वथनांकों में पर्याप्त अंतर न होने की दशा में उन द्रवों को साधारण आसवन द्वारा पृथक् नहीं किया जा सकता है। इस दशा में प्रभाजी आसवन प्रयोग किया जाता है।
इस विधि द्वारा निकट या समान क्वथनांकों वाले दो या दो से अधिक वाष्पशील द्रवों के मिश्रण को पृथक् किया जाता है।

4. वर्ण लेखन

वर्ण लेखन कार्बनिक यौगिकों के शोधन की एक बहुत महत्वपूर्ण विधि है इसका उपयोग कार्बनिक यौगिकों के शोधन में किया जाता है।
इस विधि में दो प्रावस्था होती हैं। स्थिर प्रावस्था और गतिशील प्रावस्था।
इसमें सबसे पहले मिश्रण को स्थिर प्रावस्था पर अधिशोषित कर दिया जाता है। स्थिर प्रावस्था ठोस या द्रव हो सकती है। तथा स्थिर प्रावस्था में उपयुक्त विलायक, विलायकों के मिश्रण को गतिशील प्रावस्था में धीरे-धीरे प्रवाहित किया जाता है। जिससे मिश्रण के अवयव एक दूसरे से अलग हो जाते हैं। गतिशील प्रावस्था द्रव्य या गैस हो सकती है।

वर्ण लेखन विधि सामान्यतः जटिल कार्बनिक यौगिक जैसे – शर्करा, एमीनो अम्ल, हार्मोंस तथा विटामिंस के पृथक्करण में प्रयोग की जाती है।
वर्ण लेखन को दो वर्गों में वर्गीकृत किया गया है।
(i) अधिशोषण वर्ण लेखन
(ii) वितरण वर्ण लेखन


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