जब किसी परिपथ में संधारित्र C तथा प्रतिरोध R को श्रेणीक्रम में जोड़ देते हैं। और इनमें एक प्रत्यावर्ती धारा स्रोत को जोड़ते हैं। तो इस प्रकार बने परिपथ को CR परिपथ कहते हैं।
जब संधारित्र C तथा प्रतिरोध R को श्रेणीक्रम में एक प्रत्यावर्ती धारा स्रोत से परिपथ में जोड़ा दिया जाता है। तो इस स्थिति में धारिता C के सिरों के बीच विभवांतर VC, धारा i से 90° कला में पीछे (पशचगामी) होगा।
तथा प्रतिरोध R के सिरों के बीच विभवांतर VR तथा धारा i दोनों समान कला में होंगे। अर्थात् दोनों के बीच कलान्तर शून्य होगा। चित्र में देखें।
यदि VC तथा VR का कुल विभवांतर V हो तो
\large V^2 = (V_R)^2 + (V_C)^2 (पाइथागोरस प्रमेय से)
हम जानते हैं कि
V = iR तथा VC = iXC रखने पर
V2 = (iR)2 + (iXC)2
V2 = i2R2 + i2(XC)2
V2 = i2(R2 + XC2)
V2/i2 = R2 + XC2
(V/i)2 = R2 + XC2
\frac{V}{i} = \sqrt{ R^2 + X_C^2 }
इस समीकरण कि तुलना ओम के नियम से करने पर हम कह सकते हैं। कि \sqrt{ R^2 + X_L^2 } परिपथ का प्रतिरोध है।
चूंकि V = iR तो R = V/i
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RC परिपथ की प्रतिबाधा
RC परिपथ में जो प्रतिरोध होता है वह धारिता C तथा प्रतिरोध R की उपस्थिति के कारण होता है। इसलिए यहां इसे प्रतिरोध नहीं, बल्कि RC परिपथ की प्रतिबाधा कहते हैं। जिसे Z से प्रदर्शित किया जाता है।
तब RC परिपथ की प्रतिबाधा
\footnotesize \boxed { Z = \sqrt{ R^2 + X_C^2 } }
चूंकि XC = 1/ωC होता है तब
\footnotesize \boxed { Z = \sqrt{ R^2 + (\frac{1}{ωL})^2 } }
परिपथ की प्रतिबाधा Z प्रतिरोध के स्थान पर ही प्रयुक्त किया जाता है। इसलिए इसका मात्रक भी ओम होता है।
CR परिपथ का कलांतर
जैसा चित्र से स्पष्ट किया गया है। कि विभवांतर V, धारा i से पशचगामी है। जिनके बीच कालांतर ɸ है तो
tanɸ = लम्ब/आधार
यहां चित्र में लम्ब VC तथा आधार VR है तो
tanɸ = VC/VR
tanɸ = iXC/iR
tanɸ = XC/R
XC = 1/ωC रखने पर
\footnotesize \boxed { tanΦ = \frac{1}{ωCR} }
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इस समीकरण द्वारा हम स्पष्ट कर सकते हैं कि अगर यदि C अनन्त है तो tanɸ = 0 अथवा ɸ = 0° अर्थात विभवांतर V तथा धारा i दोनों समान कला में हैं।
और यदि प्रतिरोध शून्य होगा। तो
R = 0 तब tanɸ = ∞ अथवा ɸ = 90° है। अर्थात विभवांतर V तथा धारा i के बीच कालांतर 90° होगा। या ऐसे भी कह सकते हैं कि धारा i, विभवांतर V से 90° अग्रागामी है।
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