मीटर सेतु :-
मीटर सेतु, व्हीटस्टोन सेतु के सिद्धांत पर आधारित एक यन्त्र है। एवं यह व्हीटस्टोन सेतु की अपेक्षा अधिक सुग्राही है। मीटर सेतु की सहायता से किसी चालक तार का प्रतिरोध ज्ञात किया जा सकता है।
मीटर सेतु का सिद्धांत :-
इसके लिए चित्र अनुसार परिपथ तैयार करते हैं। अब प्रतिरोध बॉक्स से कोई प्रतिरोध R निकालकर कुंजी K को बंद कर देते हैं। अब सर्पी कुंजी (J जोकी) की सहायता से एक ऐसी स्थिति प्राप्त करते हैं जिस पर कुंजी को दबाने से धारामापी में कोई विक्षेप उत्पन्न न हो। इस स्थिति को शून्य विक्षेप स्थिति कहते हैं।
माना तार AB की लंबाई का प्रतिरोध P तथा BC की लंबाई का प्रतिरोध Q है। तो व्हीटस्टोन सेतु के सिद्धांत से
\large \frac{P}{Q} = \frac{R}{S} समी. ①
यदि AB की लंबाई l है। तो BC की लंबाई 100 – ℓ होगी। अतः
AB का प्रतिरोध P = ρ \large \frac{ℓ}{a}
BC का प्रतिरोध Q = ρ \large \frac{100-ℓ}{a}
जहां ρ तार का विशिष्ट प्रतिरोध है एवं a अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल है। तो इस प्रकार
भाग करने पर \large \frac{P}{Q} = \frac{l}{100-ℓ}
अब \large \frac{P}{Q} का मान समी. ① में रखने पर
\large \frac{P}{Q} = \frac{R}{S}
\large \frac{R}{S} = \frac{l}{100-ℓ}
\footnotesize \boxed { S \,=\, R \frac{100-ℓ}{ℓ} }
जहां R = प्रतिरोध बॉक्स से निकाला गया प्रतिरोध है। तथा l = धारामापी में शून्य विक्षेप स्थिति की दूरी तथा S = अज्ञात प्रतिरोध है।
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मीटर सेतु की सावधानियां :-
- चालक तार में अधिक समय तक विद्युत धारा प्रवाहित नहीं करनी चाहिए। क्योंकि इससे तार गर्म हो जाता है। जिसके कारण चालक तार का प्रतिरोध बदल जाएगा।
- सर्पी कुंजी (J जोकी) को तार पर रगड़ कर नहीं चलानी चाहिए। क्योंकि इससे चालक तार घिसने लगता है। जिसके कारण तार की मोटाई हर एक स्थान पर समान नहीं रहेगी।
सर बहुत ही सुन्दर है और हमें समझ में भी आया है