संधारित्र के बारे में हम पिछले अध्याय में चर्चा कर चुके हैं। अब संधारित्र का सिद्धांत के बारे में अध्ययन करेंगे।
“कोई एक ऐसा समायोजन, जिसमें किसी चालक के आकार में परिवर्तन किए बिना उस पर आवेश की पर्याप्त मात्रा संचित की जा सकती है संधारित्र कहलाता है।”
संधारित्र का सिद्धांत
जैसा हम संधारित्र की परिभाषा में पढ़ चुके हैं। कि किसी एक चालक के पास कोई दूसरा चालक लाकर पहले चालक की धारिता बढ़ाई जाती है तो चालकों के इस समायोजन को संधारित्र कहते हैं।
संधारित्र का सिद्धांत इस तथ्य पर आधारित है। जब किसी आवेशित चालक के पास कोई अनावेशित (आवेशहीन) चालक रख दिया जाता है। तो आवेशित चालक का विभव कम हो जाता है। सूत्र C = \large \frac{q}{V} } से स्पष्ट है कि चालक का विभव कम होने पर उसकी धारिता बढ़ जाएगी। अतः चालक की धारिता में वृद्धि हो जाती है चित्र में देखें
इसमें धातु की प्लेट A है, जो विद्युतरोधी स्टैण्ड में लगी है। इस धातु की प्लेट को किसी विद्युत उपकरण द्वारा धन-आवेश दिया जाता है। तो प्लेट A का विभव घट जाता है। तथा एक अन्य धातु की B प्लेट जो विद्युतरोधी स्टैण्ड पर लगी है। जब प्लेट A के समीप लाई जाती है। तो प्रेरण के कारण B प्लेट के भीतरी सतह पर उतना ही ऋण-आवेश तथा बाह्य सतह में धन-आवेश उत्पन्न हो जाता है। (चित्र a देखें)
तो इस प्रकार प्लेट B का भीतरी ऋण-आवेश प्लेट A के विभव को कम करने का प्रयास करता है। जबकि इसके विपरीत प्लेट B का धन-आवेश प्लेट A के विभव को बढ़ाने का प्रयास करता है।
तो इस प्रकार प्लेट B पर धन तथा ऋण आवेश की मात्रा बराबर हो जाती है। जबकि प्लेट B, प्लेट A के नजदीक होने के कारण प्लेट A का विभव कम हो जाता है। इससे स्पष्ट है कि प्लेट B की उपस्थिति के कारण प्लेट A की धारिता बढ़ जाती है।
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अब यदि प्लेट B को पृथ्वी से जोड़ दिया जाता है। तो प्लेट A का विभव और अधिक कम हो जाता है। ( चित्र b में देखें ) इसका कारण है कि प्लेट B को पृथ्वी से जोड़ने पर इसका धन-आवेश पृथ्वी में चला जाता है। जबकि भीतरी सतह पर ऋण-आवेश, प्लेट A के धन-आवेश के कारण बना रहता है। प्लेट A की वह बाह्य सतह पर धन-आवेश न होने के कारण प्लेट A का विभव बहुत कम हो जाता है।
अर्थात् प्लेट A पर विभव कम होने से धारिता बढ़ जाती है। इससे स्पष्ट है कि किसी आवेशित चालक की धारिता, उसके समीप पृथ्वी से संबंधित कोई दूसरा चालक लाकर बढ़ाई जा सकती है। यह समायोजन, जिस पर पर्याप्त आवेश एकत्रित किया जाता है संधारित्र कहलाता है।