सभी जीवों को अपनी जैव क्रियाओं के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। सौर ऊर्जा जीवों के लिए ऊर्जा का एकमात्र स्रोत है। आइये श्वसन के बारे में अध्ययन करते हैं।
श्वसन
जीवों में कोशिकीय स्तर पर ऑक्सीजन की उपस्थिति में भोजन के जैविक ऑक्सीकरण की क्रिया को श्वसन (respiration in Hindi) कहते हैं।
यह एक जैविक क्रिया है। जो केवल सजीव कोशिकाओं में होती है। इसमें ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से कार्बन डाइऑक्साइड और जल बनते हैं। तथा ग्लूकोज में बंधित ऊर्जा धीमी गति में विभिन्न पदों में मुक्त होती है। जिसे कोशिका के अंदर ATP में संग्रहित कर लिया जाता है।
भिन्न पदों द्वारा ग्लूकोज का विखंडन निम्न प्रकार से है।
वायवीय श्वसन और अवायवीय श्वसन में अंतर
क्रम संख्या | वायवीय श्वसन | अवायवीय श्वसन |
1 | वायवीय श्वसन ऑक्सीजन की उपस्थिति में माइटोकाॅन्ड्रिया में होता है। | अवायवीय श्वसन ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में कोशिका द्रव्य में होता है। |
2 | वायवीय श्वसन में ऊर्जा अधिक मात्रा में उत्पन्न होती है। | अवायवीय श्वसन में ऊर्जा कम मात्रा में उत्पन्न होती है। |
3 | इसमें ग्लूकोस का पूर्ण विखंडन होता है। | इसमें ग्लूकोस का पूर्ण विखंडन नहीं होता है। |
4 | इसमें कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल अन्तिम उत्पाद होते हैं। | इसमें एथेनॉल तथा लैक्टिक अम्ल अन्तिम उत्पाद होते हैं। |
मनुष्य का श्वसन तंत्र
मानव श्वसन तंत्र (respiratory system of human in Hindi) के निम्न अंग होते हैं।
1. नासिक या नासाद्वार
2. ग्रसनी
3. कण्ठ
4. श्वासनली
5. श्वसनिका
6. फुफ्फुस या फेफड़े
1. नासिक या नासाद्वार
नासिका एक जोड़ी बाह्य द्वार में बाहर वायुमण्डल की ओर खुलती है। नासाद्वार से वायु नासागुहा में प्रवेश करती है। नासागुहा ग्रसनी के पिछले भाग में खुलती है। नासागुहा अंदर एक टेढ़े-मेढ़े, घुमावदार रास्ते में खुलती है। और श्लेष्मा झिल्ली से ढकी रहती है। श्लेष्मा झिल्ली श्लेष्मा का स्राव करती है।
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2. ग्रसनी
नासा मार्ग से वायु गले में स्थित ग्रसनी में प्रवेश करती है। ग्रसनी में मुख पथ तथा नासा पथ होते हैं। इसलिए ही हम मुख से भी श्वास ले सकते हैं।
3. कण्ठ
नासा ग्रसनी से वायु कण्ठ में आती है। कण्ठ छोटा-सा कश होता है जो ग्रसनी तथा श्वासनली के बीच संयोजक का कार्य करता है। कण्ठ में खुलने वाली श्वासनली का ऊपरी छिद्र ग्लाॅस्टिक कहलाता है।
4. श्वासनली
यह गर्दन की पूरी लंबाई में स्थित होती है। इसकी लंबाई लगभग 12 सेमी तथा व्यास लगभग 1.5-2 सेमी होता है। यह कण्ठ के पिछले भाग से प्रारंभ होकर वक्षगुहा के मध्य तक फैली होती है। सीने में पहुंचकर यह दो छोटी नलिकाओं में बंट जाती है। जिन्हें श्वसनियां कहते हैं। प्रत्येक श्वसनी अपने ओर के फुफ्फुस (फेफड़े) में प्रवेश करती है।
5. श्वसनिका
श्वासनली वक्ष गुहा में आकर दो शाखों में बंट जाती है जिन्हें श्वसनियां कहते हैं। प्रत्येक श्वसनी अपने ओर के फुफ्फुस में प्रवेश कर अनेक शाखाओं में बंट जाती है। जिन्हें श्वसनिकाएं कहते हैं। प्रत्येक श्वसनिका अंत में फुफ्फुस के वायु कोषों में समाप्त हो जाती है।
6. फुफ्फुस या फेफड़े
फुफ्फुस संख्या में दो होते हैं। जो हमारे श्वसन के मुख्य अंग हैं। दोनों फेफड़े हृदय के दोनों ओर वक्षगुहा के दाएं तथा बाएं ओर स्थित होते हैं। प्रत्येक फेफड़े के चारों ओर एक गुहा होती है। जिसे फुफ्फुस गुहा कहते हैं। फुफ्फुस के ठीक नीचे गोलाकार पृष्ठ के रूप में, पेशीय डायाफ्राम होता है। यह डायाफ्राम वक्षगुहा को उदर गुहा से अलग करता है।