अलंकार शब्द अलम् धातु से बना है जिसका अर्थ होता है। आभूषण।
जिस प्रकार स्वर्ण आदि के आभूषण से शरीर की शोभा बढ़ती है। उसी प्रकार अलंकार से काव्य की शोभा बढ़ती है। अर्थात् की शोभा बढ़ाने वाले तत्वों को अलंकार कहते हैं। अनुप्रास अलंकार की परिभाषा उदाहरण और के बारे में विस्तार से अध्ययन करते हैं।
अनुप्रास अलंकार
जहां एकसमान व्यंजन वर्णों की बार-बार आवृत्ति होती है वहां अनुप्रास अलंकार (anupras alankar in Hindi) होता है।
अनुप्रास अलंकार का उदाहरण
- कानन कठिन भयंकर भारी।
घोर घाम हिम वारि बयारि।।
स्पष्टीकरण – इस उदाहरण में क, भ, र, घ, म व्यंजनों की एक से अधिक बार आवृत्ति हुई है। अतः यह अनुप्रास अलंकार का उदाहरण है।
- तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
स्पष्टीकरण – इस उदाहरण में ‘त’ व्यंजनों की आवृत्ति हुई है। अतः यह अनुप्रास अलंकार है।
- बॅंदउॅं गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।
स्पष्टीकरण – इस उदाहरण में प, द, स, र व्यंजनों की एक से अधिक बार आवृत्ति हुई है। अतः अनुप्रास अलंकार है।
- जगतु जनायो जिहि सकलु सो हरि जान्यो नाहिं।
- चारु चन्द्र की चंचल किरणें
खेल रही थी जल-थल में।
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अनुप्रास अलंकार के भेद
अनुप्रास अलंकार के पांच भेद होते हैं।
1. छेकानुप्रास
2. वृत्त्यनुप्रास
3. श्रुत्त्यनुप्रास
4. लाटानुप्रास
5. अन्त्त्यनुप्रास
1. छेकानुप्रास
जब एक या अनेक वर्णों की एक ही क्रम में एक बार आवृत्ति होती है। वहां छेकानुप्रास अलंकार होता है। जैसे –
“इस करुणा कलित हृदय में,
अब विकल रागिनी बजती।”
यहां ‘क’ वर्ण की एक ही क्रण में एक बार आवृत्ति हुई है। अतः छेकानुप्रास अलंकार है।
2. वृत्त्यनुप्रास
जब एक या अनेक बड़ों की आवृत्ति केवल एक बार दो या दो से अधिक बार होती है। तब वहां वृत्त्यनुप्रास अलंकार होता है। जैसे –
“तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।”
यहां ‘त’ वर्ण की आवृत्ति पांच बार हुई है। अतः वृत्त्यनुप्रास अलंकार है।
3. श्रुत्त्यनुप्रास
जब कण्ठ-तालु, दन्त्य आदि एक ही स्थान से बोले जाने वाले वर्णों की आवृत्ति होती है। तब वहां श्रुत्त्यनुप्रास अलंकार होता है। जैसे –
“तुलसीदास सीदत निसिदिन देखत तुम्हारी मिठुराई।”
यहां त, द, स, न एक ही उच्चारण स्थान (दन्त्य) से उच्चरित होने वाले वर्णों की आवृत्ति हुई है अतः श्रुत्त्यनुप्रास अलंकार है।
4. लाटानुप्रास
जहां समानार्थक शब्दों या वाक्यांशों की आवृत्ति हो आवृत्ति हो, परन्तु अन्वय करने से अर्थ में अंतर हो, वहां लाटानुप्रास अलंकार होता है। जैसे –
“पूत सपूत, तो क्यों धन संचय।
पूत कपूत, तो क्यों धन संचय।”
यहां एक ही अर्थ वाले शब्दों का प्रयोग हुआ है। परंतु अन्वय करने से अर्थ में भिन्नता आ जाने के कारण लाटानुप्रास अलंकार है।
5. अन्त्त्यनुप्रास
जहां चरण या पद अंत में एक ही स्वर या व्यंजन की आवृत्ति होती है। वह अन्त्त्यनुप्रास अलंकार होता है। जैसे –
“जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।
जय कपीश तिहुॅं लोक उजागर॥”
यह दोनों पदों के अंत में ‘आगर’ की आवृत्ति हुई है। अतः अन्त्त्यनुप्रास अलंकार है।
आशा करते हैं कि अनुप्रास अलंकार की परिभाषा और उदाहरण, भेद आपको अच्छे से समझ आए होंगे। अगर आपका कोई प्रशन या आपको कहीं कोई गलती लगती है। तो हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। हम जल्द से जल्द आपकी समस्या का समाधान करने का प्रयास करेंगे।
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अनुप्रास अलंकार संबंधी प्रश्न उत्तर
Q.1 अनुप्रास अलंकार के पांच भेद कौन-कौन से हैं?
Ans. छेकानुप्रास, वृत्त्यनुप्रास, श्रुत्त्यनुप्रास, लाटानुप्रास तथा अन्त्त्यनुप्रास।
Q.2 अनुप्रास अलंकार की परिभाषा दीजिए?
Ans. जहां एकसमान व्यंजन वर्णों की बार-बार आवृत्ति होती है वहां अनुप्रास अलंकार होता है।
Q.3 अनुप्रास अलंकार कितने प्रकार का होता है?
Ans. अनुप्रास अलंकार पांच प्रकार का होता है।