काव्य की शोभा बढ़ाने वाले धर्मों को अलंकार कहते हैं। अलंकार मुख्य दो प्रकार के होते हैं। जहां शब्दों के कारण चमत्कार आ जाता है वहां शब्दालंकार होता है। एवं जहां अर्थ के कारण रमणीयता आ जाती है। वहां अर्थालंकार होता है।
उत्प्रेक्षा अलंकार किसे कहते हैं परिभाषा उदाहरण सहित भेद का वर्णन कीजिए। आइये इसका अध्ययन करते हैं।
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उत्प्रेक्षा अलंकार
जहां उपमेय में उपमान की सम्भावना की जाए, वहां उत्प्रेक्षा अलंकार (utpreksha alankar in Hindi) होता है। मनु-मानो, जनु-जानो आदि उत्प्रेक्षा अलंकार के वाचक शब्द हैं।
उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण
- सोहत ओढ़ै पीतु-पटु, श्याम सलोने गात।
मनौ नीलमनि सैल पर, आपतु परयौ प्रभात॥
स्पष्टीकरण – यहां श्याम सलोने गात में नीलमनि सैल की तथा पीतु-पटु में आतपु की संभावना की गयी है। और मनौ शब्द का भी प्रयोग है। अतः यह उत्प्रेक्षा अलंकार है।
- मोर मुकुट की चन्द्रिकनु, यौं राजत नँद-नन्द।
मनु ससि सेखर की अकस, किये सेखर सत-चन्द॥
स्पष्टीकरण – यहाँ मोर पंख से बने मुकुट की चन्द्रिकाओं (उपमेय) में शत-चन्द्र (उपमान) की सम्भावना व्यक्त की गयी है। और मनोज शब्द का भी प्रयोग है। अतः यह उत्प्रेक्षा अलंकार है।
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- लता भवन तें प्रगट भे तेहि अवसर दोउ भाइ।
निकसे जन-जुग बिमल बिधु जलद पटल बिलगाइ॥ च
- चमचमात चंचल नयन बिच घूँघट-पट झीन।
मानहु सुरसरिता बिमल जल उछरत जुग मीन॥
उत्प्रेक्षा अलंकार के भेद
उत्प्रेक्षा अलंकार के तीन भेद होते हैं।
1. वस्तूत्प्रेक्षा – जहां किसी एक वस्तु में दूसरी वस्तु की संभावना की जाती है वहां वस्तूत्प्रेक्षा होती है। जैसे –
“उसका मुख मानो चंद्रमा है।”
2. हेतूत्प्रेक्षा – जब किसी कथन में अवास्तविक कारण को कारण मान लिया जाए अथवा जो कारण न हो उसमें हेतु की संभावना की जाए, वहां हेतूत्प्रेक्षा होती है।
3. फलोत्प्रेक्षा – जहां अवास्तविक फल को वास्तविक फल मान लिया जाए अथवा अफल में फल की संभावना की जाए वहां फलोत्प्रेक्षा होती है।
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उत्प्रेक्षा अलंकार संबंधी प्रश्न उत्तर
Q.1 उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा क्या है ?
Ans. जहां उपमेय में उपमान की सम्भावना की जाए, वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
Q.2 उत्प्रेक्षा अलंकार का उदाहरण कौन सा है?
Ans. सोहत ओढ़ै पीतु-पटु, श्याम सलोने गात।
मनौ नीलमनि सैल पर, आपतु परयौ प्रभात॥
Q.3 उत्प्रेक्षा अलंकार के कितने भेद होते हैं?
Ans. उत्प्रेक्षा अलंकार के तीन भेद होते हैं।