उत्सर्जन तंत्र किसे कहते हैं, अंग, परिभाषा | मानव उत्सर्जन तंत्र का सचित्र वर्णन

उत्सर्जन

भोजन के अन्तर्ग्रहण तथा पाचन के पश्चात शरीर उपयोगी पदार्थों को विभिन्न ऊतकों तथा कोशिकाओं में पहुंचाता है। शरीर में विभिन्न उपापचयी क्रियाओं में अनेक अपचित तथा अपशिष्ट पदार्थ बनते हैं। जिन्हें शरीर से बाहर निकालने की आवश्यकता होती है।
शरीर में उपापचयी क्रियाओं द्वारा इन अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने की प्रक्रिया को उत्सर्जन कहते हैं। गैस, तरल तथा ठोस पदार्थ का उत्सर्जन होना आवश्यक है। एवं इनमें से प्रत्येक के उत्सर्जन की प्रक्रिया अलग-अलग होती है।

शरीर से नाइट्रोजन युक्त पदार्थ को बाहर निकलने का कार्य करने वाले अंग तंत्र को उत्सर्जन तंत्र (excretory system in Hindi) कहते हैं।
अपशिष्ट तरल पदार्थ के उत्सर्जन की जटिल क्रियाविधि होती है। क्योंकि रुधिर में पोषण तत्व तथा अपशिष्ट पदार्थ दोनों उपस्थित होते हैं। रुधिर के उत्सर्जन की क्रिया वृक्क द्वारा संपन्न होती है।

मानव उत्सर्जन तंत्र

वह जैव प्रक्रम जिसमें जीवो में उपापचयी क्रियाओं द्वारा हानिकारक नाइट्रोजन युक्त पदार्थों का निष्कासन होता है। उत्सर्जन कहलाता है। एककोशिकीय जीव इन अपशिष्ट पदार्थों को शरीर की सतह से जल में विसरित कर देते हैं।
मानव उत्सर्जन तंत्र (excretory system of human in Hindi) में एक जोड़ी वृक्क, एक जोड़ी मूत्रवाहिनी, एक मूत्राशय तथा एक मूत्रमार्ग होता है। इसके अतिरिक्त मानव में यकृत, त्वचा, फेफड़े और आंत भी उत्सर्जन में मदद करते हैं।

मानव उत्सर्जन तंत्र
मानव उत्सर्जन तंत्र

मानव शरीर में वृक्क की संख्या दो होती है। चित्र में मानव के उत्सर्जी तंत्र को दर्शाया गया है। वृक्क धमनी, महाधमनी से रुधिर लेकर वृक्क में पहुंच आती है। वृक्क द्वारा रुधिर से अपशिष्ट पदार्थ को अलग करने के पश्चात साफ रुधिर को वृक्कशिरा द्वारा वापस भेज दिया जाता है। वृक्क द्वारा अलग किए गए अपशिष्ट पदार्थ को मूत्र (Urine) कहते हैं। जो मूत्रवाहिनी से मूत्राशय में जाता है। तथा मूत्रमार्ग द्वारा शरीर से उत्सर्जित हो जाता है।

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Note – मानव शरीर में दो वृक्क होते हैं। इनमें से यदि एक वृक्क काम करना बंद कर दे, तो दूसरा वृक्क अकेले ही पूरा कार्य कर सकते हैं। अर्थात मनुष्य एक वृक्क से भी जीवित रह सकता है।

वृक्क की संरचना

वृक्क की आकृति सेम के बीच के समान होती है। यह उदरगुहा में कशेरुक दण्ड के दोनों ओर (दाएं व बाएं) स्थित होते हैं। प्रत्येक वृक्क का भीतरी किनारा धंसा हुआ होता है। तथा बाहरी किनारा उभरा हुआ होता है। प्रत्येक वृक्क, वृक्कधमनी द्वारा रुधिर प्राप्त करता है। तथा वृक्कशिरा द्वारा वृक्क से रुधिर एकत्रिक करके पश्च महाशिरा में पहुंचाता है। प्रत्येक वृक्क के भीतरी किनारे से एक मूत्रवाहिनी निकलकर मूत्राशय में खुलती है। मूत्राशय, मूत्रमार्ग द्वारा शरीर के निचले भाग में खुलता है। वृक्क द्वारा पृथक् किए गए अपशिष्ट पदार्थ (मूत्र) को मूत्रमार्ग द्वारा उत्सर्जित किया जाता है।

कृत्रिम वृक्क

यह एक ऐसी युक्ति है जिसके द्वारा रोगियों के रुधिर में से कृत्रिम वृक्क की सहायता से नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट पदार्थ का निष्कासन किया जाता है।
प्रायः एक स्वस्थ वयस्क में प्रतिदिन 180 लीटर आरंभिक निस्यंद वृक्क में होता है। जिसमें से उत्सर्जित मूत्र का आयतन 1.2 लीटर है। क्योंकि शेष निस्यंद वृक्क नलिकाओं में पुनः अवशोषित हो जाता है।

पादपों में उत्सर्जन

पादप उत्सर्जन के लिए जंतुओं से बिल्कुल भिन्न युक्तियां प्रयुक्त करते हैं। पौधों के वायवीय भागों से पानी का वाष्प के रूप में उड़ने की क्रिया को वाष्पोत्सर्जन कहते हैं। वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया द्वारा अवशोषित अतिरिक्त जल से छुटकारा पाते हैं। बहुत से पादप अपशिष्ट उत्पाद कोशिकीय रिक्तिका में संचित रहते हैं। पौधों से गिरने वाली पत्तियों में भी अपशिष्ट उत्पाद संचित रहते हैं। पादप कुछ अपशिष्ट पदार्थ को अपने आस-पास मृदा में उत्सर्जित करते हैं।

Note – यह लेख खासकर कक्षा 10 के छात्रों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। अगर आप किसी ओर कक्षा के छात्र हैं। तो एक बार अपने सिलेबस से जरूर मिला लें।


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StudyNagar

हेलो छात्रों, मेरा नाम अमन है। Physics, Chemistry और Mathematics मेरे पसंदीदा विषयों में से एक हैं। मुझे पढ़ना और पढ़ाना बहुत ज्यादा अच्छा लगता है। मैंने 2019 में इंटरमीडिएट की परीक्षा को उत्तीर्ण किया। और इसके बाद मैंने इंजीनियरिंग की शिक्षा को उत्तीर्ण किया। इसलिए ही मैं studynagar.com वेबसाइट के माध्यम से आप सभी छात्रों तक अपने विचारों को आसान भाषा में सरलता से उपलब्ध कराने के लिए तैयार हूं। धन्यवाद

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