हास्य रस की परिभाषा, उदाहरण, स्थायी भाव | hasya ras ki paribhasha

हास्य रस किसे कहते हैं। प्रस्तुत लेख में इसका पूरा अध्ययन किया गया है। हास्य रस के उदाहरण, परिभाषा को भी दिया गया है। हास्य रस कक्षा 10 और कक्षा 11 तथा कक्षा 12 में है। लेकिन आप अपनी किताब से मिलाकर उन्हीं रस का अध्ययन करें जो आपकी Class Book में दिए गए हैं।

किसी साहित्य को पढ़ने या सुनने से अथवा नाटक को देखने से जिस आनंद की अनुभूति होती है। उसे रस कहते हैं। आइए हास्य रस को समझते हैं।

हास्य रस की परिभाषा, उदाहरण
हास्य रस की परिभाषा, उदाहरण

हास्य रस

विकृत रूप, आकार, वेशभूषा, वाणी और चेष्टाओं को देखकर ह्रदय में जो विनोद का भाव उत्पन्न होता है उसे ‘हास’ कहते हैं। यही हास जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से हास्य रस (Hasya ras in Hindi) का रूप धारण करता है।
हास्य रस का स्थायी भाव हास होता है।

यह हास्य रस की परिभाषा (hasya ras ki paribhasha) सबसे सरल है जो आसानी से याद हो जाती है।

हास्य रस के उदाहरण

  1. मातहिं पितहिं उरिन भय नीके।
    गुरु ऋण रहा सोच बड़ जी के॥

स्पष्टीकरण – परशुराम-लक्ष्मण संवाद में लक्ष्मण की यह हास्यमय उक्ति हैं।
स्थायी भाव – हास है।
आलम्बन – परशुराम
उद्दीपन – परशुराम की झुंझलाहट
संचारी भाव – हर्ष, चपलता आदि
अतः इन सबसे पुष्ट होकर हास स्थायी भाव हास्य रस की दशा को प्राप्त हुआ है।

  1. नाना वाहन नाना वेषा। विंहसे सिव समाज निज देखा॥
    कोउ मुखहीन, विपुल मुख काहु। बिन पद-कर कोउ पदबाहु॥

स्पष्टीकरण – शिव-विवाह के समय ये पंक्तियां हास्यमय उक्ति हैं।
स्थायी भाव – हास है।
आलम्बन – शिव-समाज और शिव (आश्रय)
उद्दीपन – विचित्र वेशभूषा
अनुभाव – शिवजी का हंसना
संचारी भाव – हर्ष, चपलता आदि
इन सबसे पुष्ट हुआ हास नामक स्थायी भाव हास्य रस का रूप धारण करता है।

हास्य रस के अन्य उदाहरण

  1. जेहि दिसी बैठे नारद फूली।
    सो दिसी तेहि न विलोकी भूली॥
    पुनि-पुनि मुनि उकसहि अकुलाहीं।
    देखि दसा हरगन मुसकाहीं॥
  1. सीस पर गंगा हॅंसें, भुजनि भुजंगा हॅंसें
    हास ही को दंगा भयो, नंगा के विवाह में।
  1. हॅंसि-हॅंसि भाजैं देखि दूलह दिगम्बर को,
    पाहुनी जे आवैं हिमाचल के उछाल में।
  1. तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रताप,
    साज मिले पन्द्रह मिनट, घण्टा भर आलाप।
    घण्टा भर आलाप, राग में मारा गोता,
    धीरे-धीरे खिसत चुके थे सारे श्रोता।
  1. विन्ध्य के वासी उदासी तपोव्रतधारी महा बिनु नारी दुखारे।
    गौतम तीय तरी, तुलसी, सो कथा सुनि भै मुनिवृन्द सुखारे॥
    ह्वै हैं सिला सब चन्द्रमुखी, परसे पद-मंजुल कंज तिहारे।
    कीन्हीं भली रघुनायकजू करुना करि कानन को पगु धारे॥

Note – हास्य रस की परिभाषा उदाहरण सहित का यहां वर्णन हुआ है। हास्य रस के उदाहरण कई सारे हैं। इनमें से जो उदाहरण आपको आसानी से याद हो जाए, उसे याद करें तथा स्पष्टीकरण जरूर करें।

आशा है कि यह हस्य रह संबंधी यह लेख आपके लिए लाभदायक रहा होगा। अगर आपको कोई प्रश्न या सुझाव है तो हमें जरूर साझा करें।


हास्य रस संबंधी प्रश्न उत्तर

Q.1 हास्य रस की परिभाषा क्या होती है?

Ans. विकृत रूप, आकार, वेशभूषा, वाणी और चेष्टाओं को देखकर ह्रदय में जो विनोद का भाव उत्पन्न होता है उसे ‘हाथ’ कहते हैं। यही हास जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से हास्य रस का रूप धारण करता है।

Q.2 हास्य रस का स्थायी भाव क्या है?

Ans. हास्य रस का स्थायी भाव हास है।

Q.3 हास्य रस का उदाहरण क्या होता है?

Ans. मातहिं पितहिं उरिन भय नीके।
गुरु ऋण रहा सोच बड़ा जी के॥


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Gulam Waris

हेलो छात्रों, मेरा नाम गुलाम वारिस है। मैं मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश से हूं। 2022 में मैंने B.A. की शिक्षा को पूरा किया। और इसके बाद अब में B.ed. कर रहा हूं। हिन्दी, सामान्य ज्ञान, करंट अफेयर्स पर मुझे अच्छी समझ है। मुझे लिखना और पढ़ाना बहुत पसंद है। इसलिए ही मैं ऑनलाइन studynagar.com वेबसाइट की मदद से आप सभी छात्रों तक अपने ज्ञान को सरल और आसान भाषा में प्रस्तुत कराने के लिए तैयार हूं। धन्यवाद

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