करुण रस की परिभाषा उदाहरण सहित, भेद | Karun ras ki paribhasha

करुण रस के बारे में कक्षा 10 कक्षा, 11 और कक्षा 12 में प्रश्न पूछा जाता है। अगर आपके बोर्ड में करुण रस अलग कक्षाओं में है। तो एक बार अपनी किताब में से जरूर मिला लें।

कविता, कहानी, उपन्यास आदि को पढ़ने या सुनने से तथा नाटक को देखने से जिस आनंद की अनुभूति होती है। उसे रस कहते हैं। यहां करुण रस किसे कहते हैं इसकी परिभाषा तथा उदाहरण का वर्णन किया गया है।

करुण रस की परिभाषा उदाहरण सहित
करुण रस की परिभाषा उदाहरण सहित

करुण रस

करुण रस का स्थायी भाव शोक होता है। शोक नामक स्थायी भाव जब विभाग, अनुभाव और संचारी भावों से संयोग करता है। तब करुण रस (Karun ras in Hindi) की निष्पत्ति होती है।

इष्ट का नाश, और अनिष्ट की प्राप्ति, बन्धु विनाश, द्रव्यनाश एवं प्रेमी से सदैव विछुड़ जाने या दूर चले जाने से जो दुख या वेदना उत्पन्न होती है। उसे करुण रस कहते हैं। करुण रस का स्थायी भाव शोक होता है।
इस प्रकार भी करुण रस को परिभाषित (Karun ras ki paribhasha) किया जा सकता है।

करुण रस और वियोग श्रृंगार में अंतर

यद्यपि वियोग श्रृंगार में भी दुख का अनुभव होता है। लेकिन वियोग श्रृंगार में दूर चले जाने वाले से पुनः मिलन की आशा रहती है। जबकि जहां पुनः मिलन की आशा समाप्त हो जाती है। वहां करुण रस होता है। वियोग श्रृंगार और करुण रस में यही अंतर है।

करुण रस के उदाहरण

  1. सोक बिकल सब रोवहिं रानी।
    रूप सीलु बल तेज बखानी॥
    करहिं विलाप अनेक प्रकारा।
    परहिं भूमितल बारहिं बारा॥

स्पष्टीकरण – इसमें स्थायी भाव – शोक है।
आलम्बन – दशरथ, रानियां (आश्रय)
उद्दीपन – राजा का रूप तेज बल आदि
अनुभाव – रोना, विलाप करना
संचारी भाव – स्मृति, मोह आदि
अतः इन सबसे पुष्ट होकर शोक नामक स्थायी भाव करुण रस का रूप ग्रहण करता है।

  1. मणि खोये भुजंग-सी जननी,
    फन-सा पटक रही थी शीश।
    अन्धी आज बनाकर मुझको,
    किया न्याय तुमने जगदीश॥

स्पष्टीकरण – श्रवण कुमार की मृत्यु पर उनकी माता का विलाप प्रस्तुत किया गया है।
स्थायी भाव – शोक
आलम्बन – श्रवण कुमार, पाठक (आश्रय)
उद्दीपन – दशरथ की उपस्थिति
अनुभाव – सिर पटकना, प्रलाप करना
संचारी भाव – स्मृति, विषाद, प्रलाप आदि
इनके संयोग से शोक नामक स्थायी भाव से करुण रस की निष्पत्ति हुई है।

  1. जथा पंख बिनु खग अति दीना।
    मनि बिनु फनि करिबर कर हीना॥
    अस मम जिवन बन्धु बिनु तोही।
    जौ जड़ दैव जियावइ मोही॥

स्पष्टीकरण – लक्ष्मण की मूर्च्छा पर राम-विलाप प्रस्तुत किया गया है।
स्थायी भाव – शोक
आलम्बन – लक्ष्मण, राम (आश्रय)
उद्दीपन – हनुमान का विलम्ब
अनुभाव – राम के उद्गार
संचारी भाव – दैन्य, चिंता, व्याकुलता, स्मृति आदि
इन सबसे पुष्ट शोक नामक स्थायी भाव से करुण रस की दशा को प्राप्त हुआ है।

करुण रस के अन्य उदाहरण

  1. राम राम कहि राम कहि, राम राम कहि राम।
    तन परिहरि रघुपति विरह, राउ गयउ सुरधाय॥
  1. प्रिय पति यह मेरा प्राण प्यारा कहॉं है।
    दुःख जलनिधि डूबी का सहारा कहॉं है।
  1. हे जीवितेश उठो उठो, यह नींद कैसी घोर है।
    है क्या तुम्हारे योग्य, यह तो भूमि सेज कठोर है॥

Note – अगर आपको इनमें से कोई करुण रस का उदाहरण अच्छे और आसानी से याद हो जाए। वही सबसे उत्तम है। लेकिन स्पष्टीकरण जरूर करना करना चाहिए।

अगर आपको इसके अंतर्गत कोई गलती लगती है। तो आप हमें कमेंट या ईमेल के माध्यम से जरूर बताएं। तथा अपने सुझाव भी साझा करें।
धन्यवाद


करुण रस संबंधित प्रश्न उत्तर

Q.1 करुण रस किसे कहते हैं परिभाषा दीजिए?

Ans. शोक नामक स्थायी भाव जब विभाग, अनुभाव और संचारी भावों से संयोग करता है। तब करुण रस की निष्पत्ति होती है।

Q.2 करुण रस का स्थायी भाव कौन सा है?

Ans. करुण रस का स्थायी भाव शोक होता है।

Q.3 करुण रस का उदाहरण क्या होगा?

Ans. राम राम कहि राम कहि, राम राम कहि राम।
तन परिहरि रघुपति विरह, राउ गयउ सुरधाय॥


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Gulam Waris

हेलो छात्रों, मेरा नाम गुलाम वारिस है। मैं मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश से हूं। 2022 में मैंने B.A. की शिक्षा को पूरा किया। और इसके बाद अब में B.ed. कर रहा हूं। हिन्दी, सामान्य ज्ञान, करंट अफेयर्स पर मुझे अच्छी समझ है। मुझे लिखना और पढ़ाना बहुत पसंद है। इसलिए ही मैं ऑनलाइन studynagar.com वेबसाइट की मदद से आप सभी छात्रों तक अपने ज्ञान को सरल और आसान भाषा में प्रस्तुत कराने के लिए तैयार हूं। धन्यवाद

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