शान्त रस की परिभाषा तथा उदाहरण | shant ras ki paribhasha

शान्त रस कक्षा 11 और कक्षा 12 की किताब में मिलता है। अगर आपका बोर्ड अलग है तो अपनी किताब से एक बार जरूर मिला लें। आइए अब शान्त रस किसे कहते हैं परिभाषा और उदाहरण का अध्ययन करते हैं।

किसी साहित्य को पढ़ने या सुनने से अथवा नाटक को देखने से पाठक या दर्शक को जिस चरम आनंद की अनुभूति होती है उसे रस कहा जाता है।
रस में भावों का आस्वादन होता है। भाव मन के विचार हैं यह चार प्रकार के होते हैं।
1. विभाव
2. अनुभाव
3. संचारी भाव
4. स्थायी भाव

शान्त रस की परिभाषा तथा उदाहरण
शान्त रस की परिभाषा तथा उदाहरण

शान्त रस

संसार और जीवन की नश्वरता का बोध होने से चित्त में एक प्रकार का विराग उत्पन्न होता है। परिणामतः मनुष्य भौतिक तथा अलौकिक वस्तुओं के प्रति उदासीन हो जाता है इसी को निर्वेद कहते हैं। निर्वेद नामक स्थायी भाव विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से पुष्ट होकर शान्त रस (shant ras in Hindi) की दशा को प्राप्त होता है।

शान्त रस की परिभाषा

शान्त रस का स्थायी भाव निर्वेद होता है। निर्वेद नामक स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से संयोग करता है। तब शान्त रस की निष्पत्ति होती है।
अभिनव गुप्त ने शान्त रस को सर्वश्रेष्ठ माना है।

शान्त रस को इस प्रकार भी परिभाषित किया जा सकता है। कि तत्व ज्ञान की प्राप्ति अथवा संसार से वैराग्य होने पर, परमात्मा के वास्तविक रूप का ज्ञान होने पर मन को जो शान्ति मिलती है। वहां शान्त रस की उत्पत्ति होती है।

शान्त रस के उदाहरण

  1. जब मैं था तब हरि नाहिं, अब हरि हैं मैं नाहिं।
    सब अंधियारा मिट गया, जब दीपक देख्याॅं माहीं॥

स्पष्टीकरण – इसमें स्थायी भाव – निर्वेद है।
आलंबन विभाव – संसार का विश्लेषण, आत्मचिंतन आदि।
उद्दीपन विभाव – सत्संग, परमात्मा का विचार, ध्यान आदि।
संचारी भाव – स्मृति, निर्विचार, शांतचित्तता आदि।
इन सबसे पुष्ट होकर निर्वेद स्थायी भाव शान्त रस को प्राप्त हुआ है।

  1. अब लौं नसानी अब न नसैहौं।
    राम कृपा वन निसा सिरानी जागे फिर न डसैहौं।
    पायो नाम चारु चिंतामनि उर करतें न खसैहौं।
    श्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी चित कंचनहिं कसैहौं।
    परबस जानि हॅंस्यो इन इन्द्रिन निज बस ह्वै न हॅंसैहौं।
    मन मधुकर पन करि तुलसी रघुपति पद कमल बसैहौं।

स्पष्टीकरण – यहां स्थायी भाव – निर्वेद है।
उद्दीपन विभाव – सांसारिक असारता और इन्द्रियों द्वारा उपहास
अनुभाव – स्वतन्त्र होने तथा राम के चरणों में रति होने
संचारी भाव – धृति, वितर्क, मति आदि।
इन सबसे पुष्ट होकर निर्वेद नामक स्थायी भाव शान्त रस की दशा को प्राप्त हुआ है।

  1. मन रे तन कागद का पुतला।
    लागै बूँद बिनसि जाय छिन में, गरब करै क्या इतना॥

Note – शान्त रस के ओर अन्य भी उदाहरण है। लेकिन हमने यहां पर तीन उदाहरण को शामिल किया है। इनमें से जो आपको अच्छा और आसान लगे। उसी को याद करें, एवं उसका स्पष्टीकरण जरूर करें।

आशा है कि शान्त रस की परिभाषा तथा उदाहरण से संबंधित यह लेख आपके लिए काफी मदद पूर्ण रहा होगा। अगर आपको इसमें कोई गलती लगती है या आपका कोई प्रश्न है। तो आप हमें कमेंट या ईमेल के माध्यम से संपर्क करें।
धन्यवाद


शांत रस संबंधित प्रश्न उत्तर

Q.1 शांत रस की परिभाषा दीजिए?

Ans. निर्वेद नामक स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से संयोग करता है। तब शान्त रस की निष्पत्ति होती है।

Q.2 शांत रस का उदाहरण क्या होता है?

Ans. मन रे तन कागद का पुतला।
लागै बूँद बिनसि जाय छिन में, गरब करै क्या इतना॥

Q.3 शान्त रस का स्थायी भाव क्या होता है?

Ans. शान्त रस का स्थायी भाव निर्वेद होता है।


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