वीर रस किसे कहते हैं, परिभाषा उदाहरण सहित, भेद

इससे पहले हमने रस के विभिन्न प्रकार पर लेख लिख रखा है जिनका लिंक नीचे प्रस्तुत किया गया है आइए वीर रस किसे कहते हैं इसके बारे में विस्तार से आसान भाषा में अध्ययन करते हैं।

किसी साहित्य को पढ़कर अथवा सुनकर या नाटक को देखकर जिस आनंद की अनुभूति होती है। उसे रस कहते हैं।

वीर रस की परिभाषा उदाहरण सहित
वीर रस की परिभाषा उदाहरण सहित

वीर रस

जहां उत्साह नामक स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से रस रूप में परिणत होता है। तो वहां वीर रस (veer ras in Hindi) होता है। वीर रस का स्थायी भाव उत्साह होता है।

वीर रस की परिभाषा

युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए ह्रदय में निहित उत्साह स्थायी भाव के जाग्रत होने के प्रभावस्वरूप जो भाव उत्पन्न होता है। उसे वीर रस कहा जाता है। वीर रस का स्थायी भाव उत्साह होता है।

Note – यह दोनों प्रकार की परिभाषाएं ही ठीक हैं आप चाहे तो नीचे वाली ऊपर वाली वीर रस की परिभाषा (Veer ras ki paribhasha) कर सकते हैं।

वीर रस का उदाहरण

  1. साजि चतुरंग सैन अंग में उमंग धारि,
    सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं।
    भूषन भनत नाद बिहद नगारन के,
    नदी नाद मद गैबरन के रलत हैं।

स्पष्टीकरण – प्रस्तुत पद में शिवाजी की चतुरंगिणी सेना के प्रयाण का चित्रण प्रस्तुत किया गया है।
स्थायी भाव – उत्साह
आलम्बन – युद्ध को जीतने की इच्छा
उद्दीपन – नगाड़ों का बजना
अनुभाव – हाथियों के मद का बहना
संचारी भाव – उग्रता
अतः इन सबसे पुष्ट होकर उत्साह स्थायी भाव वीर रस का रूप धारण करता है।

  1. मैं सत्य कहता हूॅं सखे! सुकुमार मत जानो मुझे।
    यमराज से भी युद्ध में प्रस्तुत सदा मानो मुझे॥
    है और की बात ही क्या, गर्व मैं करता नहीं।
    मामा तथा निज तात से भी समर में डरता नहीं॥

स्पष्टीकरण – इसका स्थायी भाव – उत्साह है।
आलम्बन – कौरव, अभिमन्यु (आश्रय)
उद्दीपन – अभेद्य चक्रव्यूह की रचना
अनुभाव – अभिमन्यु के वाक्य
संचारी भाव – गर्व, औत्सुक्य, हर्ष आदि
इन सभी के संयोग से वीर रस की निष्पत्ति हुई है।

वीर रस के अन्य उदाहरण

  1. चढ़ चेतक पर तलवार उठा,
    करता था भूतल पानी को।
    राणा प्रताप सिर काट-काट,
    करता था सफल जवानी को॥
  1. वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
    हाथ में ध्वज रहे बाल दल सजा रहे,
    ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं
    वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।

वीर रस के अवयव

स्थायी भाव – उत्साह
आलम्बन – अत्याचारी शत्रु
उद्दीपन – शत्रु का पराक्रम, शत्रु का अहंकार, यश की इच्छा आदि
अनुभाव – रोमांच, प्रहार करना, कम्प, धर्मानुकूल आचरण आदि
संचारी भाव – उग्रता, आवेग, गर्व, चपलता, धृति, मारी, हर्ष आदि

वीर रस के भेद

1. युद्धवीर
2. दानवीर
3. दयावीर
4. धर्मवीर

Note – वीर रस किसे कहते हैं। परिभाषा उदाहरण सहित इसका वर्णन इस लेख में किया गया है। यह आपके लिए काफी सहायक सिद्ध हुआ होगा। अगर आपका कोई प्रश्न हैं या आपको कहीं कोई गलती लगती है। तो हमसे तुरंत ईमेल या कमेंट से संपर्क करें।
धन्यवाद


वीर रस संबंधित प्रश्न उत्तर

Q.1 वीर रस की परिभाषा क्या है?

Ans. जहां उत्साह नामक स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से रस रूप में परिणत होता है। तो वहां वीर रस होता है।

Q.2 वीर रस का उदाहरण दीजिए?

Ans. साजि चतुरंग सैन अंग में उमंग धारि,
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं।
भूषन भनत नाद बिहद नगारन के,
नदी नाद मद गैबरन के रलत हैं।

Q.3 वीर रस का स्थायी भाव क्या होता है?

Ans. वीर रस का स्थायी भाव उत्साह होता है।


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Gulam Waris

हेलो छात्रों, मेरा नाम गुलाम वारिस है। मैं मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश से हूं। 2022 में मैंने B.A. की शिक्षा को पूरा किया। और इसके बाद अब में B.ed. कर रहा हूं। हिन्दी, सामान्य ज्ञान, करंट अफेयर्स पर मुझे अच्छी समझ है। मुझे लिखना और पढ़ाना बहुत पसंद है। इसलिए ही मैं ऑनलाइन studynagar.com वेबसाइट की मदद से आप सभी छात्रों तक अपने ज्ञान को सरल और आसान भाषा में प्रस्तुत कराने के लिए तैयार हूं। धन्यवाद

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